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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विच्छेद तीर्थ क्या फिर प्राचीन गौरवको प्राप्त हो सकेगा? लेखक : श्रीयुत पी. सी. जैन [अधिकारी, बिहार राज्य धार्मिक न्यासपरिषद ] जैन धर्म, जैन संस्कृति और जैन शासनको टिका रखनेमें तीर्थ स्थानोंका बहुत बडा हाथ रहा है। २४ तीर्थंकरों से २२ तीर्थंकर बिहार प्रान्तसे मोक्ष पधारे हैं । विच्छेद तीर्थोंमेंसे बिहार प्रान्तमें जो दो स्थान हैं उनमेंसे गया जिलेमें भदिलपुर वह स्थान है जहां श्री. शीतलनाथस्वामीजीके चार कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा तथा केवलज्ञान हुए । शासनके नायक श्री. महावीरस्वामीजीने भी यहां चातुर्मास किया था। उनके बाद भी बहुतसे साधु मुनिराज यहां आये थे। यह तीर्थ बहुत ही प्राचीन और पुनित है पर दुःखका विषय है कि आम जैन जनता इसके बारेमें कुछ विशेष नहीं जानती। गया स्टेशनसे बस द्वारा हन्टरगंज या शेरघाटी जानेके बाद भदिलपुर गांव आता है। बस्ती पार करनेके बाद पहाड शुरू होता है । पहाडकी चढाई करीब डेढ माईल है । स्थान अब भी कितना रमणीक है, बयान करना मुश्किल है। यहां बरसातके दिनोंमें इस स्थान पर पहुंचना इतना आसान नहीं है। किसी समय यह स्थान महत्त्वका रहा होगा। प्रभु शीतलनाथस्वामीजीका यहां जन्म हुआ, आपकी माताका नाम था नंदा रानी और आपके पिता थे राजा दृढरथ । आप जिस समय गर्भमें आये उस समय राजा दृढरथ दाहज्वरसे पीडित थे पर आपके गर्भ में आते ही राजाने आश्चर्यजनक शीतलताका अनुभव किया। इस महिमाको जानकर ही आपका नाम शीतलनाथ रक्खा। आपका स्वर्ण रंगका वर्ण था और था श्रीवत्सका लंछन । आप श्री. सम्मेतशिखरजी पहाड पर मोक्ष पधारे थे । पहाडके रास्तेमें एक देवीका मंदिर है । आसपासमें बहुतसी खंडित मूर्तियां पड़ी हैं। इस मंदिरमें बकरेकी बली चढती है। आपको सुनकर अत्यन्त दुःख होगा कि वह देवीकी मूर्ति हिन्दू देवीकी नहीं है, वह है शासनदेवी जैनोंकीः अहिंसाके अवतार, करुणाके सागरके सामने मूक, निर्दोष पशु कटते हैं ! क्या देव, गुरु और धर्मके अनुसार चलनेवाले सुश्रावक लोग इस विच्छेद तीर्थक पुनरुद्धार और साथ ही साथ पशुवधको रोकनेमें सहायक होंगे? थोडी दूर और चलने पर आपको एक विशाल सरोवर मिलेगा जिसमें लाल कमल बहुतायतसे हैं । इस सरोवरके बीचमें भगवान शीतलनाथस्वामीके चरण किसी समय विराजते थे। For Private And Personal Use Only
SR No.521719
Book TitleJain_Satyaprakash 1955 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1955
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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