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एक अमेरिकन विद्वानकी खोज पृथ्वी गोल नहीं, चपटी है।
लेखक : श्रीयुत हरिराम नागर [ यह एक नयी शोध है, जो जैन मान्यताको प्रमाणित करती है। वैज्ञानिक दृष्टिसे आज तक पृथ्वीको गोल मानी जाती है, पर पृथ्वी चपटी है, यह वैज्ञानिक दृष्टिसे लेखकने कितने ही प्रमाण देकर अपने विषयको स्पष्ट करनेका प्रयत्न किया है। यह प्रयत्न जैन सिद्धांतको सच्चे रूपमें प्रगट करता है। संपा०]
हम पृथ्वीकी गोलाईसे इतने अधिक परिचित हो गये हैं कि इसके विरुद्ध कही जानेवालो किसी भी बात पर हम सहसा विश्वास नहीं कर सकते। इस कारण कन्दुकाकार पृथ्वीको चपटा कहकर एक अर्वाचीन सिद्धांतने सचमुच हमें आश्चर्यमें डाल दिया है। हो सकता है, भविष्यमें किसी दिन पृथ्वी ' रकाबी' आकारकी बताई जाने लगे। " श्री जे० मेकडोनाल्ड नामक अमेरिकन वैज्ञानिक "ने अपने एक लेखमें अनेक दृढ़ प्रमाण देकर यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है कि पृथ्वी नारंगीके समान गोल नहीं है। ___ उसने कहा है कि यदि पृथ्वीको अन्य ग्रहों की भांति एक ग्रह माना जाय, तो निश्चय ही जो सिद्धांत दूसरे नक्षत्रों एवं ग्रहोंके अध्ययनसे स्वीकृत किये गये हैं; वे हमारी पृथ्वी पर भी लागू होंगे। ऐसी दशामें जिन आधारों पर इस सिद्धांतकी स्थापना की गई है, वे सब अकाट्य और अप्रत्यक्ष हैं । इसमें सन्देह नहीं कि यह खोज निकट भविष्यमें समस्त वैज्ञानिक जगतमें उथल-पुथल मचा देगी। पाठकोके मनोरंजनार्थ कुछ चुने हुए प्रमाण दिये जाते हैं
प्रत्येक आधुनिक वैज्ञानिक इस बातको स्वीकार करता है कि चन्द्रमा ओर अन्य ग्रहोंका एक मुख सदैव पृथ्वीकी ओर रहता है। यदि वे ग्रह कंदुकाकार होते और अपनी धुरी पर घूमते तो निश्चय ही प्रत्येक दिवस अथवा प्रत्येक मास या प्रत्येक सालमें उनके भिन्न २ धरातल पृथ्वीकी ओर होते । इससे सिद्ध है कि चन्द्रमा और अन्य ग्रह रकाबीकी भांति है, जिनके किनारे केन्द्रकी अपेक्षा कुछ ऊंचे उठे हैं। यदि सचमुच पृथ्वी भी एक ग्रह है तो अवश्य ही उसका आकार इस रकाबीके समान है।
यदि पृथ्वी गोल होती तो सनातन हिमश्रेणियोंकी ऊंचाई भूमध्य रेखासे दक्षिणमें उतनी ही होती जितनी कि उत्तरमें । दक्षिणी अमेरीकामें सनातन हिमश्रेणियोंकी ऊँचाई १६००० फुट है और जैसे हम उत्तरकी ओर बढ़ते जाते हैं, यह ऊँचाई क्रमशः कम होती जाती है; यहां तक कि अलास्का पहुँचने पर वह केवल २००० फुट ही रह जाती है।
अधिक उत्तरकी ओर जाने पर यह ऊँचाई समुद्र तलसे केवल ४०० फुट नापी गई है।
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