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અંક: ૪] એક અમેરિકન વિદ્વાનકી જ
[६७ पृथ्वी गोल होती तो उत्तरी ध्रुवके समीप जैसी वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं, वैसे ही दक्षिणी ध्रुवमें भी होती । “वास्तवमें उत्तरी ध्रुवके इर्दगिर्द २०० मीलके भीतर कई प्रकारकी वनस्पतियां पाई गई हैं।
ग्रीनलैंड, आइसलैंड, साइबेरिया आदि उत्तरी शीत कटिबंधके निकटस्थ प्रदेशमें आलू, जई, मटर, जौ, तथा चनेकी फसलें तैयार होती हैं। इसके विपरीत दक्षिणमें ७० अक्षांश पर ओरकेनी शेट्लैंक आदि टापुओं पर एक भी जीव नहीं पाया जाता ।
यदि पृथ्वी गोल होती तो उत्तरमें जिस अक्षांश पर जितने समय तक उषःकाल रहता है; उतने ही अक्षांश पर दक्षिणमें भी उतनी ही देर उषःकाल रहता। किंतु वास्तवमें ऐसा नहीं है । उत्तरमें ४० अक्षांश पर ६० मिनट तक उषःकाल रहता है और सालके उसी समय भूमध्य रेखा पर केवल १५ मिनट और दक्षिणमें ४० अक्षांश पर तो केवल ५ ही मिनट । मेलबोर्न, ऑट्रेलिया आदि प्रदेश दक्षिणमें उसी अक्षांश पर हैं, जिन पर उत्तरमें फिलाडेल्फिया है।
___ यहांके एक पादरी फादर जोन्सटनने इन दक्षिण अक्षांशोंको यात्राके सिलसिलेमें लिखा है कि-" यहां उषःकाल और सन्ध्याकाल केवल ५ या ६ मिनट के लिये होते हैं। जब सूर्य क्षितिजके ऊपर ही रहता है, तभी हम रातका सारा प्रबन्ध कर लेते हैं। क्योंकि जैसे ही सूर्य डूबता है, तुरन्त रात हो जाती है ।" इस कथनसे सिद्ध है कि यदि पृथ्वी गोल होती तो भूमध्य रेखाके उत्तरी-दक्षिणी भागोंमें उषःकाल अवश्य समान होता ।
केप्टन जे० रास सन् १८३८ ई. में केप्टन क्रोशियरके साथ यात्रा करते हुये जितनी अधिक दक्षिणकी ओर आटलांटिक (ऐंटार्शटिक) सरकिल तक जा सके, गये। उनके वर्णनसे ज्ञात होता है कि उन्होंने वहां पहाड़ोकी ऊँचाई १०,००० से लेकर १३,००० तक नापी और ४५० फुटसे लेकर १००० फुट तक ऊँची एक पक्की बर्फीली दीवार खोज निकाली।
इस दीवारका ऊपरी भाग चौरस था और उस पर किसी प्रकार की दरार या गड्ढा न था। यहांसे पृथ्वीके चारों ओर चक्कर लगानेमें चार वर्षका समय लगा। और ४०,००० मीलकी यात्रा हुई। किन्तु दीवारका कहीं अन्त न हुआ। यदि पृथ्वी गोल होतो, तो इसी अक्षांश पर पृथ्वी की परिधि केवल १०,८०० मोल होती, अर्थात् ४०,००० मीलके बजाय केवल १०,८०० मीलकी यात्रा पर्याप्त होती।
यदि उपर्युक्त सिद्धांत ठीक है तो भूमध्यरेखा निश्चय ही भूकी मध्यरेखा ही है क्योंकि भूमध्यरेखा दक्षिणमें समस्त देशांतर रेखायें उत्तरी भागके समान सँकरी न होकर चौड़ाई में बढ़ती ही जाती हैं । यहां कोई काल्पनिक आधार नहीं किन्तु अवलोकनीय सत्य है । कर्करेखा (२३॥ अंश उत्तर, का एक अंश ४० मीलके लगभग है, किन्तु इसके विपरीत मकर
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