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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म १० ] સિદ્ધાચલ ગજલ [१८७ शांति जिनेंद देहरा सुखकार, पेषत बहु उपजे प्यार, अलाईदो पीर साहअंगार, वड्डा बुरज है दरबार. चोमुष गेलुका गंभीर, साहमी पोल सुषकी सीर, चोमुष चंग चोवाराक्, पेषत लागही प्याराक्. चोमुष रूपदे अतिचंग, राजत वदन नवनव रंग, ऐसा रूप नही काहा ओर, दुनिआ देखते दोर् दोर. दीपक दिसत हे निसदिन् , सेवक सेवते सुभ मिन् , पापति देहर परचंड, मिरगिर मांडणीको मंड्. रायण रूष रुडे रंग, पूरव निवाणु रहे प्रभु चंग, गणधर चवदेसे बावन्न् , पादुके पूजीए सुभ मन्न. देहरी बावने दीपंत, जाली बंध हे इक पंद , दरसण करत लो(क) अपार, गोमुष चक्केसरी सुषकार चोमुष उपर चोमुष देषु , चिहु दिस देहरी भी षेष् , दूर ही देषीये गिरनार, वंदन कीजीइ सुविचार. ऊतरे तिहां देवल बंद . उपजत देषीइ आनन्द, पुंडरीक देव टांका एक, ओर ही देहरा अनेक. दादो देव जिनचंद वंद, आगो चले कर आनन्द, सहसकर पांडव देव, साला माहि श्रीराम सेव. छीपावसीकी छवी देष, रायणरूष भी सपेष, झुंझुकुंड परवाक्, झंगर अव पुफजाडीक् प्रणमत गोतमोके पाय, बोडीआर कंड पाठीया रमाय प्रेमावसी देवल पूज, आरस देहरा बी छूज चिहुं दिस देहरी कुंड चंग, अदबुद बंदीए उछरग जिमणी तरफ गेटीपाज, कुंतासर वाम है काई काज. आगे सोगालपोल राजैक्, झरोषाधूब छार्जक, नोघण उपर फुलवारीक, ध्रमसाल चिहु भी दिस धारिक् बाघणपोल हणमत वीर, षेतलवीर भी गहगीर, अंब चक्केसरी गोमुष, समोसरण भी परतष, चोउरी नेमकी हे चंग, षरतरवसी पूज मनरंग बारी मोषकी कहतेक्, पापी धरमको परषेक दहु दिस देहरे सुविचार, पेषत नाहि जाको पार कुमारपालका देहराक्, आगे चोक हे गेहराक पीपल आंबली छोह, हाथीपोल भी हे ताहि, पुंडरिक पोल हे सिरताज, मन शुद्ध भेटीइ माहाज. प्रोढो प्रथम जिनप्रासाद, ऊपजै देषकैआल्हाय, कूड कपट मनका मेट, भाव संयुक्त प्रभूको भेट For Private And Personal Use Only
SR No.521712
Book TitleJain_Satyaprakash 1954 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1954
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size11 MB
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