________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१८६]
www.kobatirth.org
શ્રી, જૈન સત્ય પ્રકાશ
गजल छंद हिरणफाल
गुणवंत पादुके गहगीर, पूर्जत हरत तनकी पीर भूषणवाव है भल्लीक्, वढ़ गन घेटी है वल्लीक वडतल चबूतरा वडा, शीतल छाय झुक झुंडक् दह दिस तरखर बरांको दाव, वाडी बूव सतवावर पाणी पावणेकी पर्व्व, सिंघको लोक सुषीयै सर्व आगे चलत अति आनंद, वामानंद के पद वंद झोषे झुक रहि है जाल, मन शुद्ध धरे फूकी माल गावे गीत राग रसाल, लेकर हाथ भद्दर ताल. भणहण करत है भेदी, नादै अल नफेरीक फरहर फबजे झंझाकू, नेजा षूव नव घडक नोबत बाजत है नंगर, झांझ डिझिग डिरणार रंग ऐसी तरह से ससढुकार, इने करत है दैकार अव तलहटी ढिग आय, बाजा रीतसे बजतावक् चेतवंदन करत वार इकीस, पंचांग पणाम नमीये सीस आलोइण लै गिर अविलोक्, घरके ध्यान सैधोक् काजत सदत चढते भाव, सुमति समेत धरते पाव असातन सब अलगी कीधू, लटकन धूपणा कर लीध आगे च्यार हे छत्री, पूजा होत फल पत्रीक् पगला प्रथम जिनक पूज, बहुरे चलत दिल घर बूज, पेषही चढ़त पहिपाज, छत्री एक हे सिरताज धोलीपर्व हैं सुष धाम, चढ़ते लेत हे विसरांम, इच्छाकुंड दु पर्व्व, वंदत नेमपगले सर्व. नीलीपर्व तीजी नाम, चौथी पर्व चढ़ते ठाम, कुमारकुंड हे दूजोकू, छत्री एक हे पूजोक. हड़ा हिंगलाजका आयाक्, कलिकुंपूज ड सुष पायाक्, थिर मन करी हाथको जोड़, नमते सीस मनको मोड. छत्री एक सालाकुंड, कछु तहवराक झुंड, घाट चले मक्का गाल, बेठा विसराम हे सुविसाल् द्रवड वारेषणरि दहमत्त, वंदो भवि तमो सुभचित्त, थावच्च पंच काउग्गमंडू, कुमती कपटको दे दंड. हीराकुंड भूषण कुंमपी वद पेषत महीमंड, सक्कोसल साधुजीके पाय, चढते घूब हणमंत राय, पासल पादुके परमाण, पूठे भाट तलावहि जान्. जालम जबर जूनो ड्रंक, चित्तकी छूट जाव चूक, बारी पेस मरुदे माय, पणमत सेबहि पातक जाय.
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१
३.
६
७
१०
११
१२
१३
१४
१५
१६
१७
[ वर्ष : १८