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સિદ્ધાચલ ગજલ
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इसके अंतिम भागमें मुगलद्वारा शासित इन १२ प्रान्तोंका परिचय दिया है- बंगाल, बिहार, इलाहाबाद, आगरा, अवध, लाहौर, दिल्ली, बरार, खानदेश, गुजरात, मालवा और अजमेर । उसमें निवास करनेवाली जातियाँ, वन, जलाशय व नदियाँ, तीर्थ, दुर्ग, प्रमुख नगर, क्षेत्रफल, जनताकी प्रकृति आदि अनेक महत्त्वपूर्ण ज्ञातव्यों पर प्रत्यक्षदर्शी प्रकाश डाला गया है। मुगलों की शासन पद्धति, विशेष पद, वस्त्र, आभूषण, संस्कार आदि कई विषय चकत्ताकी परम्परा में वर्णित है । इस प्रकार के वर्णन अबुल फजलकी " आइने अकबरी " में भी हैं । आवश्यक जानकारीके साथ मनोरंजन प्रधान इस परम्परामें ऐतिहासिक तथ्य भी स्वतः संकलित हो गये । १८ वीं शती तककी प्राचीन प्रति इसकी मिली है पर इसके बीज 'आइने अकबरी " में विद्यमान हैं । तुलना करने पर चकत्ता की परम्पराका ही अपने ढंगका संस्करण गजल साहित्य है, ऐसा मुझे एक विश्वास सा हो गया । चकत्ताकी परम्पराका मुख्य दृष्टिकोण राजनैतिक है तो गजलों का धार्मिक या सामाजिक | मनोरंजनमें दोनों समान है । गजल छंदोबद्ध रचना है तो परम्परा गद्य में है । तात्पर्य, गजल निर्माताओं पर पूर्व सूचित परम्परा पद्धतिका अधिक प्रभाव पडा है। शैली वह हैं, भावोंकी प्रेरणा माहात्म्योंसे ली । इस विषय पर मेरा अभी अन्वेषण जारी है। विद्वानोंको चाहिए इस पर अधिक प्रकाश डालें ।
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प्रस्तुत सिद्धाचल गजल वर्णनात्मक परम्पराकी एक कडी है, यों तो सिद्धाचलजी की तीर्थमालाएं भी अनेक हैं पर अत्यन्त दुःखके साथ सूचित करना पड रहा कि अभी तक ये प्रकाशनकी प्रतीक्षा में हैं । इतने प्रसिद्ध महातीर्थ के ऐतिहासिक साधन उपेक्षित रहें यह तो गौरवकी बात नहीं है।
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इस गजलमें स्थानों का नामोल्लेख मात्र है । भाद्रपद शुक्ला १४ संवत १८६४ में इसकी रचना हुई । इसी कविकी गिरनार गजल भी मिलती है जो मेरे “ नगरवर्णनात्मक प्राचीन पद्य संग्रह " में प्रकाशित है ।
सिद्धाचल गज़ल
चरण नमुं चकेसरी, विमलाचल गुण वर्णवं ए गिर गुण अनन्त है
पाय ।
प्रणमुं सद्गुरु श्री सिद्धगिर सुपसाय ॥ १ ॥ सीधा साधु अनन्त ।
सेयुंज महातममां कह्यो, गिरवर बहु गुणवन्त ॥ २ ॥
ललितसरोवर उलित है, वडल पद युग वरन है, मोतीवाच मजे परी, जंगर तरखर जास है,
तरवर घणे सोहत । मुनिजन मन मोहन्त ॥ ३॥ प्रेमनाथ भूतनाथ । गुणवन्त रायण आथ ॥ ४ ॥
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