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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८] श्री. मेन सत्य [वर्ष:१८ स्थानोंमें मूर्तिपूजकोंके घर नगण्य रह गये, या सभी अमूर्तिपूजक बन गये; इससे जैन मंदिर रहते हुए भी उनकी पूजा-प्रतिष्ठा और जीर्णोद्धारादिकी व्यवस्था अड़बड़ा गयी। मेवाड़ और बीकानेरके स्थली प्रान्तमें अनेक स्थानोंमें जैन मंदिर विद्यमान हैं पर उनके माननेवाले न रहनेसे बड़ी आशातना हो रही है। मारवाड़ प्रदेशमें तेरहवीं शतीमें एक बड़ा परिवर्तन आया। पूर्ववर्ती शासन समाप्त होकर राठौड़ साम्राज्यका उदय हुआ । यद्यपि जैनोंके लिए वह अनुकूल ही रहा । राठोड़ोंकी प्राचीन राजधानी खेड़ों थी जो स्थान पहले गुहिल राजपूतोंक अधिकारमें था । गोहिलोके डांभी मंत्रियोंने उनसे असंतुष्ट हो राठौड़ोंको बुलाया और उन्होंने गोहिलोको हटाकर अपना साम्राज्य स्थापित किया । इस समय यहां जैनोंका भी अच्छा निवास और प्रभाव पाया जाता है । यद्यपि अब वहां कोई जैन मंदिर विद्यमान नहीं है फिर भी कुछ वर्ष पूर्व जलाशय खोदते हुए एक परिकर व एक खडित जैन प्रतिमा मिली थी। मूर्ति मस्तकविहीन होनेसे वापस गाड़ दी पर परिकरको तत्रस्थ श्रीरणछोड़जीके मन्दिरकी सामनेवाली दिवालीमें लगा दिया गया था । इस पुण्यकार्यमें हमारे पुस्तकाध्यक्ष श्रीयुत बद्रीप्रसादजी साकरियाका विशेष हाथ रहा है । इस परिकर पर जो लेख है उसका फोटो भी हमें श्रीसाकरियाजीसे प्राप्त हुआ है । यह शिलालेख सं. १२३७ का है और ८ पंक्तियोंमें खुदा हुआ हैं, जिसकी प्रतिलिपि इस प्रकार है १ ॐ॥ श्रीखेटे श्रीभावहि]डाचार्यगच्छे श्रीऋषभदेव २ चैत्ये वैद्यमनोरथ आभू माणिक थेहर आंबड़ ३ पुत्र वीरचंद्र देसल पुत्र पाल्हण आभू पुत्र २ महंद्र ४ नागदेव नारायण मनोरथ पुत्र ऊदिग माणि५ क पुत्र जिणचंद्र नेमिचंद्र थेहरपुत्र पउंदेव जग ६ देव सोभनादिभिः वैद्य जसपाल सिंधलश्रेयार्थ ७ श्रीरिषभदेवचैत्ये तोरणं कारापित । प्रतिष्ठितं श्री ८ विजयसिंहसूरिभिः ॥ संवत् १२३७ आषाढ़ वदि ७ खेड़के जैन इतिहासकी गवेषणा करते हुए कतिपय उल्लेखनीय बातें ज्ञात हुई जिनका निर्देश कर देना भी यहां अनुचित नहीं । खरतरगच्छकी " युगप्रधानाचार्य-गुर्वावली" के अनुसार यहां सं. १२४३ में श्रीजिनपतिसूरिजीका चतुर्मास हुआ था। श्रीजिनेश्वरसूरि 'संयमश्रीविवाहवर्णन-रास'के अनुसार सं. १२५८ चैत्र कृष्णा २ को यहांके श्रीशांतिनाथ जिनालयमें श्रीजिनपतिसूरिजीने 'षष्टिशतक' For Private And Personal Use Only
SR No.521700
Book TitleJain_Satyaprakash 1953 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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