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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A' : १०] ખેડકા જૈન શિલાલેખ [१८ निर्माता भंडारी नेमिचन्द्रके नन्दन अंबड़कुमारको, दीक्षित किया था । आपका दीक्षानाम वीरप्रभ और आचार्यपट्टानन्तर श्रीजिनेश्वरसूरि प्रसिद्ध हुआ। संयमश्रीके विवाहका. वर्णन बड़ा सुन्दर होनेसे यहां खेड़से संबंधित कतिपय पंक्तियां उद्धृत कर दी जाती हैं : "कुसलिहिं खेलिहिं जानउत्र पहुतिय खेड मझारि । उच्छवु इयउ अइपवरु नाचइ फर फर नारि ॥ २० ॥ जिणवइसूरिण मुणिपवरो देसण अमियरसेण । कारिय जीमणवारि तहि जानह हरिसभरेण ॥ २१॥ संति जिणेसर वर भुवणि मांडिउ नंदि सुवेहि ।। वरिसइ भाविय दानजलि जिम गयगंगणा मेह ॥ २२ ।। तहि अगयारिय नीपजइ झाणानलि पजलंति । तउ संवेगहिं निम्मियउ हथलेवउ सुमुहुत्ति ॥ २३ ॥ इणि परि अंबड वर कुमरु परणइ संजम नारि । वाजइ नंदिय तूर घण गूड़िय घर घर वारि ।। २४॥ हमारी “ दादा जिनकुशलसूरि" पुस्तकके परिशिष्ट 'क' के विवरणानुसार यहांका छाजहड़ उद्धरण साह सं. १२४५ में खरतरगच्छानुयायी हुआ । उसने यहां पर महाउत्तुंग तोरणप्रासाद बनाया था जिसकी प्रतिष्ठा श्रीजिनपतिसूरिने.. की थी। विशेष संभव है कि वह उपर्युक्त शान्तिनाथ प्रासाद ही हो। उद्धरण और उसकी पत्नी दोनों बड़े धर्मिष्ठ थे। जिनकी प्रशंसा श्रीजिनपतिसूरिजी द्वारा किये जाने पर अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहाणके मान्य सेठ रामदेव उद्धरणकी विशेषता जाननेके लिए खेड़नगर पहुंचे और वहां जानेसे सूरिजीके कथनकी विशेष प्रतीति प्राप्त कर आनंदित हुए। उद्धरणशाहके सुपुत्र मंत्री कुलधरने श्रीजिनेश्वरसूरिजीके समय बाहड़मेरमें उत्तुंग तोरणमय प्रासाद बनाया। इसी छाजहड़ वंशमें आचार्य श्रीजिनचंद्रसूरि, उनके पट्टधरः श्रीजिनकुशलसूरि, श्रीजिनपद्मसूरि और श्रीजिनभद्रसूरि आदि प्रभावक आचार्य हुए। खरतरगच्छकी वेगड़शाखाके अधिकांश आचार्य इसी शाखाके हुए। आज भी छाजहड़गोत्रीय श्रावक खरतरगच्छके अनुयायी हैं । 'युगप्रधानाचार्य-गुर्वावली' के अनुसार संवत् १३८३ में आचार्य श्रीजिनकुशलसूरिजी जालोरसे विहार कर समियाणा होते हुए यहां पधारे थे। - खेड़में अभी रणछोड़सयजीके मन्दिरके अतिरिक्त वस्तीका सर्वथा अभाव है। वर्षाकालमें कृषिकार्य निमित्त कुछ लोग अवश्य ही आ जाते हैं। यह स्थान बालोतरा और महेवानगर, For Private And Personal Use Only
SR No.521700
Book TitleJain_Satyaprakash 1953 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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