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અંક : ૮ ] 'સાહ રાજસી રાસકા સાર
[ १३८ रामा नामक पुत्र हुआ जिसके पुत्र व कानबाई हुई और सरीआई नामक द्वितीय भार्या थी जिसके मानसिंह पुत्र हुआ ।
राजसीक द्वि. स्त्री सरूपदेवीके लाछां, पांची और धरमी नामक तीन पुत्रियां हुईं। तृतीय स्त्री राणबाई भी बड़ी उदार और पतिव्रता थी। तेजसीसाहके तृतीय पुत्र नयणसीसाह हुए, जिनके मनरंगदे और मोहणदे नामक दो भार्यायें थीं । तेजसीसाहने पुण्यकार्य करते हुए इहलीला समाप्त की। राजसीके अनुज नयणसीके सोमा और कर्मसी नामक दानवीर पुत्रद्वय हुए।
सं० १६६०में जैनाचार्य श्री धर्ममूर्तिसूरिजी नवानगर पधारे । श्रावक समुदायके बीच जाम नरेश्वर भी वन्दनार्थ पधारे । सूरिमहाराजने धर्मोपदेश देते हुए भरत चक्रवर्तीके शत्रुजय संघ निकाल कर संघपति पद प्राप्त करनेका वर्णन किया। राजसी शाहने शत्रुजयका संघ निकालनेकी इच्छा प्रकट की। सं० १६६५में लघु भ्राता नयणसी व उनके पुत्र सोमा, कर्मसी तथा नेता, धारा, मूलजी-तीनों भातुष्पुत्रों व स्वपुत्र रामसी आदिके साथ प्रयाण किया । संघनायक वर्द्धमानजी व पद्मसी थे । संघको एकत्र कर शत्रुजयकी ओर प्रयाण किया। हालार, सिंध, सोरठ, कच्छ, मरुधर, मालव, आगरा और गुजरातके यात्रीगणोंके साथ चले। हाथी, घोड़ा, ऊंट, रथ, सिझवालों पर सवार होकर व कई यात्री पैदल भी चलते थे । नवानगर और शत्रुजयके मार्गमें गन्धर्वी द्वारा जिनगुण स्तवना करते हुए व भाटो द्वारा बिरुदावली वखानते हुए संघ शत्रंजय जा पहुंचा । सोनेके फूल मोती व रत्नादिकसे गिरिराजको वधाया गया । रायण वृक्षके नीचे राजसीसाहको संघपतिका तिलक किया गया। सं० राजसीने वहां साहमीवच्छल व लाहणादि कर प्रचुर धनराशि व्यय की । सकुशल शत्रुजय यात्रा कर संघ सहित नवानगर पधारे, आगवानीके लिये बहुत लोग आये और हरिणाक्षियोंने उन्हें वधाया। ___ शत्रुजय महातीर्थकी यात्रासे राजसी और नयणसीके मनोरथ सफल हुए। वे प्रति संवत्सरीके पारणाके दिन स्वधर्मीवात्सल्य किया करते व सूखड़ी श्रीफल आदि बांटते । जाम नरेश्वरके मान्य राजसी साहकी पुण्यकला द्वितीयाके चन्द्रकी तरह वृद्धिंगत होने लगी। एक वार उनके मनमें विचार आया कि महाराजा संप्रति, मंत्रीश्वर विमल और वस्तुपाल, तेजपाल आदि महापुरुषोंने जिनालय निर्माण कराके धर्मस्थान स्थापित किये व अपनी कीर्ति भी चिरस्थायी की। जिनेश्वरने श्रीमुखसे इस कार्य द्वारा महाफलको निष्पत्ति बतलाई है, अतः यह कार्य हमें भी करना चाहिए । उन्होंने अपने अनुज नयणसीके साथ एकान्तमें सलाह करके नेता, धारा, मूलराज, सोमा, कर्मसी आदि अपने कुटुम्बियोंकी अनुमतिसे जिनालय निर्माण कराना निश्चित कर जाम नरेश्वरके सम्मुख अपना मनोरथ निवेदन किया । जाम
२ इनका 'चरित्र वर्द्धमान पद्मसी प्रबन्ध' एवं 'अंचलगच्छ पदावली में देखना चाहिए।
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