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જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१५ १३ ठीक न समझकर मतिकीर्ति के बदले उसके गुरु गुणविनयरचित होनेका उल्लेख कर दिया हो । पर इसका निर्णय तो प्रतिकी प्राप्ति होने पर ही संभव है। अतः समस्त विद्वानों से इस प्रन्थकी प्रतिकी खोज करनेका सादर अनुरोध है।
श्रीविजययतीन्द्रररिप्रकाशित सूचोका संशोधन
लेखक-श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा 'श्री जैन सस्य प्रकाश' के क्रमांक १५१-५२में पृ. आ. श्रीविजययतीन्द्रसूरिजीने थिरापद्गच्छीय ज्ञानभण्डारके विवाहलो आदिकी सूची प्रकाशित की है, पर उसमें कतिपय भूले रह गई है, जिनका संशोधन यहां दिया जाता है
१. नं.१, ३ दोनों शांतिनाथ विवाहले यथासंभव एक हो है। नं. ३ के आगे आपने आनन्दविमलसूरि-सोमसौभाग्यसरि शिष्य प्रानदप्रमोद लिखा है वहां ' सोमसौभाग्य 'के स्थान पर 'सौभाग्यहर्षसूरि ' व 'शिष्य के स्थान पर 'समयमें ' एवं नाम आनन्दप्रमोद' होना चाहिए । शिष्य तो वे हर्षप्रमोदके थे। देखो जैन गुर्जर कविओ, भा. ३, पृ. ६०३। । २ नं. ४ वासुपूज्यधवलके रचयिता विशेष संभव विनयदेवसूरि ही है।
३ नं. ५ नेमिनाथधवलके कर्ता विनयदेवसूरि छपा है यहां भी विनयदेवसुरि ही चाहिए। ग्रन्थ नामके आगे संवत दिया है वह लेखनका प्रतीत होता है । जैन गुर्जर कविओ भा० ३, पृ. ६०६ के अनुसार इसकी सं. १६१४में लिखित प्रति उपलब्ध है।
१ सुबाहुसंधिके रचयिताका नाम पुण्यसार नहीं पुण्यसागर है, एवं उसका रचनासमय १६७४ नहीं १६०४ है। 'चडोतर ' से अपने ७४ समझ लिया, पर वह ४का द्योतक है। जिनमाणिक्यमुरिके आदेशसे इसकी रचना हुई, उनका समय भी सं.१५८२से १६१२का है।
५ नं. ९ से १७का आदि, अन्त प्रकाशित होना आवश्यक है। उनमें नं १० आदिका संभवतः जैन गुर्जर कविओंमें उल्लेख नहीं हुआ अतः अज्ञात है।
थिरापद्र गच्छ एक प्राचीन गच्छ है। उसके भंडारमें उस गच्छकी पट्टावली आदि ऐतिहासिक सामग्री हो या उस गच्छके या अन्य अन्यत्र अप्राप्य ग्रन्थ जो हों उन्हें भी प्रकाशमें लाना चाहिए। ____ कडवामतका भंडार भी इसी थिरापदमें महत्वपूर्ण है । उनके बहुतसे ग्रन्थोंका उल्लेख मुझे कडवागच्छ पट्टावलीमें मिला पर वे अन्य कहीं उपलब्ध नहीं है, अतः उस गच्छके भंडारका भी निरीक्षण आवश्यक है।
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