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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક ૨ ] શ્રીજિનપતિસૂરિ-વધામણાગીત वालक हैं ये क्या जानते हैं ?" मूरिजी के ध्यानबल से शासनदेवी या श्री जिनचंद्रसूरिजी ने प्रत्यक्ष होकर वासक्षेप निर्देष किया, जिसके प्रभावसे प्रतिमा पर वासक्षेप करने पर तत्काल स्तंभित प्रतिमा चल हो गयी । समस्त संघमें अपार हर्ष छा गया । ६४ इन्द्रोंने कलशाभिषेक किया। योगी भी मूरिजी के चमत्कार से प्रसन्न हो कर पूर्वोक्त मणि प्रसन्नता पूर्वक उन्हें समर्पण कर गया। इसके बाद योगी दूसरी सिद्ध विद्याए सूरिजीको देनेको उद्यत हुआ परन्तु उनके लिए ताम्बूल भक्षण अनिवार्य था । सूरिजी के अस्वीकार करने पर योगीने विद्याओंको पाताल प्रवेश करा दिया कि संसार में दूसरा कोई तुम्हारा ग्राहक नहीं। इस प्रकारका वृत्तांत खरतर गच्छ पट्टायलो में पाया जाता है। तत्कालीन लोक भाषा में निर्मित "वधामणा गीत " जो हमें जेसलमेर भंडार से प्राप्त हुआ-यहां प्रकाशित किया जाता है । भाषा और इतिहास की दृष्टि से यह गीत महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुतः घटना का समय इस गीत में सं. १२३२ ज्येष्ठ सुदि ३ को है क्योंकि गीत में इसो दिन प्रतिष्ठा करवानेका उल्लेख है। इसकी दूसरी प्रति १७ वौं शती की लिखी बीकानेरकी अनूप संस्कृत लायब्ररी में विद्यमान है । इतना प्राचीन वधावागीत अन्य कोई उपलब्ध नहीं होता। इसकी भाषा साहित्यिक न होकर तत्कालीन बोलचाल की है । बोलचाल की भाषा की रचनाएं प्रायः नगण्य है इस दृष्टि से इसका महत्त्व बहुत बढ जाता है । श्री जिनप्रतिसूरिजी बडे प्रकाण्ड विद्वान आर जबरदस्त वादी थे। आपने सम्राट पृथ्वीराज की सभा में एवं अन्य कितने ही शास्त्रार्थों में प्रतिपक्षी वादियों पर विजय पायी थी। इन के सम्बन्ध में दो गीत साह रयण और साह भत्तड श्रावकके बनाये हुए हमारे ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है। श्री जिनपतिसूरिजी की विस्तृत जीवनी जिनपालोपाध्याय कृत युग प्रधानाचार्य गुर्वावली में है जो सिंघी जैन ग्रंथमाला से शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है । पृथ्वीराज की सभाके शास्त्रार्थ में 'हिन्दुस्तानी' वर्ष १० अंक १में हमारा " पृथ्वीराजकी सभा में जैनाचार्यों के शास्त्रार्थ" नामक निबन्ध देखना चाहिए। श्रीजिनपतिसूरिकी रचनाओं में संघपट्टक वृत्ति और वादस्थल उपलब्ध हैं। इनके शिष्यगण भी बडे विद्वान थे, जिनकी विद्वत्तापूर्ण कृतिये पायी जाती हैं। श्रीजिनपतिमूरि आसीनगर वद्धामणा गीत आसी नयरि वधावणउ आयउ जिणपतिसूरि, जिणचंदसूरि सीसु आइया ले। For Private And Personal Use Only
SR No.521637
Book TitleJain_Satyaprakash 1947 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1947
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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