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६४ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ वधावण वजावि सुगुरु जिणपतिसार आवीया लो || आंचली ॥ हरियर गोवर गोहलिया मोतिय चउकु पुरेहु || जिण० ॥ १ ॥ घरि घरि गूडिया उच्छलिया तोरणि बंदुरवाल || जिण० ॥ २ ॥ करड़ कसीलीय झालरिया घाघरिया ऊणकारु || जिण० ॥ ३ ॥ निए माई सालाखणी ए जायउ जिणपतिसूरि, तिहुयणे जगि जसु धवलियाले ॥ जिण० ॥ ४ ॥
हाजिय मुहतउ इम भइ संपइ होसेइ कांइ, बालइ चांदि कि चांदणउ संघह मणोरह पूरि ॥ जिण० ॥ ५ ॥
सुहगुरो मन विहसिय करए संघह वयण सुणेह || जिण ० ॥ ६ ॥ उत्तर दक्खिण पूरब पच्छिम मिलियउ चउविह संघु । जिण० ॥ ७ ॥
बारह सौ बत्तीसा ए मासि जेठह सुद्धि तीजह
पतीठ कारए जिणपतिसूरि ॥ जि० ॥ ८ ॥
पूरब देसा जोगियउ आइयाउ पतिम थंभिया तेण, बालइ राजि दूजणु सरिउ ॥ जि० ॥ ९ ॥
सिरमा महत्तर इम भइ जइ किम फुरइ त फोरि, कइ संघ लंछण आविसीय ॥ १२ ॥
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जोगिया पतिम ज थ भियाले सकइ न कोइ उच्चाइ,
बालउ अम गुरु रुअड़उ ॥ जि० ॥ १० ॥
सिरमा महत्तर इम भइ इव पहु होसइ कांइ बालह चांदि कि चांदणउ ॥ ११ ॥
सउ संघ जि मनि घरइ ए सुहगुरु बालउ देखि । मेरु समाणउ तोलिउए ॥ १३ ॥
सिरिमा महत्तर ध्यानुवरि आयलि सासणदेवि, जिणपतिसूरि गुरु वीनवउए ॥ १४ ॥ जि० ॥ आचरि दीजहि सतपाट मांहि बइठउ जिणपतिसूरि, ध्यानिहि ज्ञानिहि सोवियां ले ।। १५ ।। जि० ॥ को कहु चारिक धोवतिया आणउ पतिम उचाई, वासखेड सुहगुरु करइए ॥ १६ ॥ जि० ॥
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[वर्ष १४