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જેન સત્ય પ્રકાશ : [ વર્ષ ૧૭ આ વિવેચન ઉપરથી જણાયું હશે કે ઉદારાદિ સ્વરની વ્યવસ્થા જૈન શાસ્ત્રમાં હતી અને છે, જો કે વેદની ઉચ્ચારણની પેઠે એ નથી.
વ્યત્યાગ્રંડિત વગેરેને અન્ય અર્થ-પનિજજુત્તિની ર૨૮મી ગાથામાં આ બાબતનો ઉલ્લેખ છે. એમાંથી હીનાક્ષર અને અધિકારક્ષને છોડીને એની પછીની વ્યત્યાદિત પાંચ બાબતને અંગે અક્ષર, પદ, પાદ, બિન્દુ અને માત્રાનો સમાવતાર કરે એમ કપનિષુત્તિની ૨૯મી ગાથામાં કહ્યું છે. આ સમજાવતાં મયગિરિસૂરિ કહે છે કે અન્યોન્ય શાસ્ત્રનાં અક્ષરોથી, પદોથી, માત્રાઓથી અથવા ઘોષથી વ્યત્યાગ્રેઠિત છે. એ પ્રમાણે વ્યાવિદ્ધ વગેરે માટે જાણી લેવું. ઘોષ વડે જ, નહિ કે અક્ષરાદિકથી પરિપૂર્ણ તે घोष छे. मा५२, सुरत. ता. ७-१०-४७
श्राजिनपतिसूरि-वधामणागीत
(सं.-श्रीयुत भंवरलालजी नाहटा) युगप्रधान दादा साहेब श्री जिनदत्तसूरिजी के पट्टधर मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी दिल्लीपति महाराजा मदनपालको प्रतिबोध देनेवाले प्रभावक जैनाचार्य थे। उनके ललाट के ऊपर मणि शोभायमान थी। दिल्लीमें आचार्यश्रीका स्वर्गवास हुआ, इतः पूर्व उन्होंने उपर्युक्त मणि प्राप्त करने के लिए श्रावकों को कह दिया था कि दूधका कटोरा लेकर तैयार रहें अग्नि संस्कार के समय मेरे ललाटस्थित मणि निकल कर दूध में जा पडेगी, परन्तु शोकाकुल श्रावक दूधका कटोरा रखना भूल गये । एक योगी जिसने इन बात को सुन ली और अग्नि संस्कार स्थानमें दूधका कटोरा लिए तैयार रहा उस दुग्ध पात्र में पड़ी हुइ मणि को लेकर योगी चला गया।
श्रीजिनचंद्रसूरिजी के पट्ट पर श्री जिनपतिसूरिजी विराजमान हुए । उनकी अवस्था केवल १४ वर्ष की थी। एकवार श्री जिनपतिमूरिजी आशिका (हांसी) पधारे। हाजी मुंहता नामक श्रावक ने दिव्य जिनालय निर्माण कराया था वहां के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा की प्रतिष्ठा के हेतु सूरिजीसे प्रार्थना की । उत्सव महोत्सव बडे समारोह से प्रारंभ हुए। देशदेशान्तरों में कुंकुम पत्रिकाएं भेजी गई। चारों दिशाओंका श्रावकसंघ प्रतिष्ठावसर पर एकत्र हो गया। इसी अवसर पर मणिग्राही योगी भी आ पहुंचा । उसने लघुवयस्क सूरिजो की परीक्षा करने के लिए पार्श्वनाथ प्रतिमा को स्तंभित कर दी और लोगोंके समक्ष स्तंभित प्रतिमा को मुक्त करने के हेतु सूरिजीको चुनौती दी। समस्त जैन संघ इस विध्नसे चिन्तातुर हो गया क्योंकि प्रतिष्ठाका मुहूर्त चले जाने से लोक में बड़ी अपकीर्ति की संभावना थी। साध्वियों के सिखाने से श्राविकाएं गाने लगी कि " बालचंद्र चन्द्रिका नहीं करता, गुरुजी
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