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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४1 જેન સત્ય પ્રકાશ [ વર્ષ ૧૨ परम आवश्यक है। सभी मंदिरों एवं प्रतिमाओं के लेखोंका उसमें संग्रह होना चाहिए। कलापूर्ण स्थापत्योंके चित्र एवं वर्तमान जैन वस्तीकी गणना आदि द्वारा प्राचीन कालसे अबतक दि. एवं श्वे. दोनों समाजका कैसा संबंध रहा भलीभांति दिगदर्शन कराया जाना आवश्यक है। आशा है स्थानीय जैनसमाज, यतिजी आदि एवं प्राचीन जैन गौरवको प्रकाशमें लानेकी इच्छावाले सज्जन इस और शीघ्र ध्यान देंगे। अब थोडा सा निवेदन मैं जिर्णोद्धारके संबंधमें भी कर देना आवश्यक समझता हूं। जैसाकी अभी जिर्णोद्धारका कार्य चल रहा है वैसे काम चलनेसे तो बहु वर्ष लगेंगे, अतः नवीन देहरीये आदि न बनवाकर जो मंदिर जीर्णशीर्ण दशामें पडे हैं एवं दिनोदिन टूटते भांगते जा रहे हैं उनकी अतिशीध्र सुधि लेनी चाहिये अन्यथा उनके ढह पड़ने पर खरच एवं कार्य और अधिक बढ जायगा। अतः जिर्णोद्धारके कार्यका ढंग परिवर्तन करना आवश्यक है। मूर्तियें अभी प्राप्त हो ही चूकी है एवं फिर भी इधर उधर और मिल जायगी अतः सब मंदिरोंके भग्न अंशोकी मरम्मत कराके प्रत्येक मंदिर में एक दो मूर्तियें प्रतिष्ठित करदी जाय ताकि उन मंदिरों की पूजा प्रारंभ होनेसे देखभाल होने लगेगी। झाडू बुहारी होनेसे कचरा नहीं जमेगा और उनकी दशा जो दिनोदिन खराब हो रही है वह रुककर सुधार पर आजायगी। कई मूर्तियां एवं मंदिरोंके भग्न पाषाणखण्ड इधरउधर बिखरे पडे हैं उन्हें एक स्थान पर संग्रहीत कर लिया जाय जिनसे उनकी सुरक्षा हो। जिस एक मंदिर में देवीकी पूजा प्रारंभ हो चली है उसमें देवीजीको अन्यत्र स्थापित कर उसका कब्जा जैनसंघको पुनः प्राप्त कर लेना चाहिए। हजारों रुपयोंकी लागतके जैन मंदिर हमारी उपेक्षाके कारण अब भी नष्टभ्रष्ट होते रहे यह कभी वांछनीय नहीं है। योग्य व्यक्तिको यह सब सुपरत करने पर थोडे अर्थव्ययसे सुन्दर काम हो सकता हैं। परिशिष्ट माननीय ओझाजीके उदयपुर राज्यके इतिहाससे चितौडके जैन स्मारकोंके संबंध आवश्यक जानकारी उद्धृत की जाती है। १ चितौड दुर्गको मौर्यवंशी चित्रांगदने बनवाया। ८ वीं शतीमें गहिलवंशी बप्पा रावलने मौर्यवंशी मानसे हस्तगत किया। चितौड जाते पुल आती है उसमें कई हिन्दु एवं जैन मंदिरोंके पत्थर लगे हुए हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.521630
Book TitleJain_Satyaprakash 1947 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1947
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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