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वर्ष १२
अंक
७
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॥ अर्हम् ॥
अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र
श्री जैन सत्य प्रकाश
शिंगभाईकी वाडी :
विभ स. २००३ : वीरनि. स. २४७३ : ४. स. १७४७
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૧૫મી એપ્રીલ
ચૈત્ર વદ ૯
घीकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात )
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મગળવાર :
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नवकार - फल-प्रकरणम्
सं० पूज्य मुनिमहाराज श्री कांतिविजयजी
घण-घाइ - क्रम्म - मुक्का, अरहंता तह य सव्व - सिद्धा य । आयरिया उवज्झाया, पवरा तह सव्व - साहू अ ॥ १ ॥ एआण नमुकारो, पंचहं पवर-लक्ख-धराणं ।
भविआण होइ सरणं, संसारे संसरंताणं ॥ २ ॥ उडुमो तिरिमि अ, जिण - नवकारो पहाणओ नवरं ।
नर - सुर-सिव - सुक्खाणं, कारणं इत्थ भुवणम्मि ॥ ३ ॥ ते इमो निच्चं चिञ, पढिज्जइ सुत्तट्ठिएहिं अगवरयं ।
होइ चिज दुह-दलणो, सुह-जणओ भविय - लोयस्स ॥ ४ ॥ जाए वि जो पढिज्जइ, जेण य जायस्स होइ फल- रिद्धी । अवसाणेवि पढिज्जइ, जेण मओ
सुग्गई जाइ ॥ ५ ॥
१
आवय (ई) हिं पि पढिज्जइ, जेण य लंघेइ आवय (इ) - सयाई । रिद्धीहिं पि पढिज, जेण य सा जाइ विव्थारं ॥ ६ ॥
न य सिरि हुति सुराणं, विज्जाहर नेव नरवरिंदाणं ।
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जाण इमो नवकारो, सासुव्व पइट्टिओ कंठे ॥ ७ ॥ जह अहिणा दट्ठाणं, गारुडमंतो विसं पणासेइ ।
तह नवकारो मंतो, पाव - विसं नासइ अयेसं ॥ ८ ॥ १ पंचण्ड वि. प्रत्यन्तरे ।
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क्रमांक १३९
२ आवइएहिं पढिज्जइ. प्रत्यन्तरे । ३ सा सव्व प्रत्यन्तरे ।