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१७८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष ११ किं एस महारयणं, चिंतामणि व्व नवकारो ।
किं कप्पदुम-सरिसो, नहु नहु ताणंपि अहिययरो ॥९॥ चिंतामणि-रयणाई, कप्पतरू एग-जम्म-सुह-हेऊ ।
नवकारो पुण पवरो, सग्गऽप्पवग्गाण दायारो ॥१०॥ जं किंचि परम-ततं, परमप्पय-कारणं च जं किंचि ।
तत्थ इमो नवकारो, झाइजइ परमजोगिहि ॥ ११ ॥ जो गुणइ लक्खमेगं, पूएइ वीहिइ जिण-नमुक्कार ।
तित्थयर-नाम-गुत्तं, सो बंधइ नत्थि संदेहो ॥ १२ ॥ जो 'पुण लक्खमणुणं, परिअट्टेऊण पूअए संघ ।
सो तईयभवे सिज्झइ, अहवा सत्तट्ठमे जम्मे ॥ १३ ॥ सद्धिसयं विजयाणं, पवराणं जत्थ सासओ कालो ।
तत्थ वि जिण-नवकारो, एसोवि पढिज्जइ नवरं ॥१४॥ एरावएसु पंचसु, पंचसु भरहेसु तं चिअ पढंति ।
जिण-नवकारो एसो, सासय-सिव-सुक्ख-दायारो ॥१५॥ जेण मरतेण इमो, नवकारो पाविओ कयत्थेण।
सो देवलोय गंतु, परमपयंतं पि पावेइ ॥ १६ ॥ एसो अणाइकालो, अणाइ-जीवो अगाइ-जिण-धम्मो ।
तइआवि ते पढंता, ए चिअ जिण-नमुक्कारं ॥ १७ ॥ जे केइ गया मुक्ख, गच्छंति य केइ कम्म-मल-मुका।
ते सव्वे च्चिअ जाणसु, जिण-नवकार-प्पभावेणं ॥ १८ ॥ इअ एसो नवकारो, भणिओ सुर-सिद्ध-खयर-पमुहेहि।
जो पढइ भत्ति-जुत्तो, सो पावइ सासयं ठाणं ॥ १९ ॥ अडवि-गिरि-रन-माझे, भयं पणासेइ चिंतिओ संतो।
रक्खइ भविअ-सयाई, माया जह पुत्त-भंडाई ॥ २० ॥ ४ इक. प्रत्यन्तरे। ५ एतत्पद्यं प्रत्यन्तरे नास्ति ।
६ इय एस पढिज्जइ निचं, प्रत्यन्तरे । ७ सुम्चिय पढंति. प्रत्यन्तरे। ८ एसुच्चिय जिण नमुकारो. प्रत्यन्तरे । ९ समरिओ. प्रत्यन्तरे।
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