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[વર્ષ ૧૨
२०२]
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ १४ चंद्रप्रभ (मलधार गच्छीय) १५ ,, १५ सुमतिनाथ (सुराणा रामचंदकारित) ७० या १७ १६ शांति (खरतर वसही)
४५
सतरिसय २ शत्रुजय गिरनार (पट्ट)
१७ पार्श्व (७ फन) १८ सुमति (बरहडीया धनराजका.) ५० १९ शांति (डागा जिनदत्तका) २००
१२५
३३८ ३८
२० शांति (लोला वसही) २१ मुनिसुव्रत (नागौरिका.) २२ शीतल (अंचलगच्छीय) २३ मुनिसुव्रत (नाणावाल ग०) २४ सीमंधर (पल्लीवाल) २५ पार्थ (चित्रावाल ग०) २६ सुमति (पूर्णिमा गच्छीय) २७ आदिनाथ चौमुख (मालवी)
४०
૨૨ ८७३
शत्रुजय, गिरनार, अष्टापद
२८ मुनिसुव्रत (गुफामें कीर्तिधर शुकौंसल, ३ गोमुखोंसे पानी बहता है, पासमें कुंभा
राणाका कीर्तिस्तंभ है कुंभेश्वर) २९ शांति (चौमुख-वेलाकारित) २२५
शीतल, आदि, पार्श्व ३० अजित (सरणावसही) ३१ शांति (शा. डंगर का०)
सत्तरिसय ३२ संभव
५८५
९९०
५ इसे अभी सिंगार चौरी कहते थे पर यह भ्रमित नाम है। वास्तविकमें इसका नाम अष्टापदावतार शांति जिनालय है। इसे महाराणा कुंभाके खजानची शा वेलाने सं.१५०५में बनवाया था। ओझाजी आदिने इसकी प्रतिष्ठा ख० जिनसेनसूरिजीने की लिखा है पर वास्तवमें प्रतिष्ठापक आचार्यका नाम जिनसुन्दरसूरि है।
६ इन ३२ जिनालयों के बाद भी शायद १-२ मंदिर और बने होंगे। जिस चैत्यपरिपाटीके आधारसे उपर सार दिया गया है उसका रचनाकाल सं.१५७३ है, पर अभी
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