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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ વર્ષ ૧૨ पध २-६ का आदि वर्ण ओं, न, म सि, ध है पद्य ७-२२ तक के प्रथम वर्ण अ आ, इ ई आदि हैं। पद्य २३-५५ तक के प्रथम वर्ण क, ख, ग, घ, न आदि ह तक । पध ५६-६४ तकके आदि वर्ण लं, ख, मं, ग, लं, मं, हा, श्री, मा है। उपर के उद्धरणोंसे सिद्ध होता है कि वर्णमाला का उच्चारण ओं नमः सिद्धम् से प्रारम्भ होता था। इसके भी पहले एक और अक्षर या शब्द बोला जाता था । उद्धरणोंके अनुसार इसका नाम और कदाचित् उच्चारण भी "भले" था। आज भी महाजनी लिपि सिखाते समय अध्यापक १ (एक) का अंक लिखकर उसे " एको राम सहाई " पढ़ते हैं। फिर "औनामासी धौने" जो ओं नमः सिद्धं का अपभ्रंश है बोलकर क, ख, ग, घ, ङ, आदिसे वर्णमालाका उच्चारण करते हैं। पंजाबकी गुरुमुखी लिपिमें भी १ अंकके बाद ओं लिखकर उसे "एकोंकार" पढते है । हुंडी चिट्रियों पर महाजनीमें पता लिखनेसे पहले ७४ ॥ का अंक लिखते हैं, परंतु यह पढ़ने में इसका उच्चारण नहीं किया जाता । वास्तव में ७४ ॥ इसी द० ॥ का रूपान्तर है। इसमें स्पष्टतया ४ का अंक बिन्दु का विकार है। ७ का अंक गुप्तकालीन लेखोंके आदिमें भी मिलता है। कई विद्वान् इस ७ को सिद्धम् का चिह्न मानते हैं। इस कथनसे यह बात भली भांति सिद्ध हो गई कि इस प्रकारके चिह्न लिखनेकी प्रथा बहुत प्राचीन है। इसके मूल तथा इतिहास पर किसी आगामी अंकमें विचार किया जावेगा। प्रतियों के अन्त में [इति] श्रीः, श्रीरस्तु, [इति] शुभम् , शुभमस्तु आदि शब्द होते हैं । किसी २ प्रति में ॥छ॥छ।। ॥छ॥।॥ अक्षर भी होता है । इस छ का कोई अर्थ या प्रयोजन समझ में नहीं आता । उद्धरणोंमें वर्णमाला के ह के पश्चात् क्ष आता है। शायद "भले" और ओं नमः सिद्धं की तरह क्ष वर्णमालाका अन्त माना जाता था। इस अवस्थामें प्रतिका अन्तसूचक क्ष हो सकता है। कदाचित् क्ष का ग्रामीण उच्चारण छ होनेसे क्ष के स्थानमें छ लिखनेको परिपाटी पड़ गई हो । अथवा भले की तरह छ भी कोई चिह्नमात्र है । इस पर भी विचार करनेकी आवश्यक्ता है। आश्विन शुक्ला १२, सं. २००३ जैन विद्याभवन, ६ नेहरू स्ट्रीट, कृष्णनगर, लाहौर, For Private And Personal Use Only
SR No.521626
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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