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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - म २] . मन प्रतियों में मारन मोर समाप्ति से यह [४७ पद्य ५६-५७ के जादि वर्ण क्ष और मं है । ३. मातृका चउपइ (पृ० ७४, पद्यसंख्या ६४)। पध १-त्रिभुवनसरणु सुमरि जगनाहु जिम फिट्टइ भवदवं दुहदाहु । जिणि अरि आठ करम निर्दलीय नमो जिन जिम भवि नावऊ वलिय ॥१॥ आंचली-सवि अरिहंत नामवि सिद्ध सूरि उवझाय साहू गुणभूरि । माईय बावन अक्षर सार चउपईबंधि पढिउं सुविचारु ॥१॥ भले भणेविण भणीअइ भलउं, तिहूयण माहि सारु एतलउं । जिनु जिनवचनु जगह आधारु, इतीउ मूफिउ अवरु अस्सारु ॥२॥ मीडउं पडिउं भवनागमा, जउ समिकत्ति लोणु आतमा। जिनह वयणि करिजे निहु ठाउ, हृदय रहवि तिहुयण नाहु ॥ ३ ॥ लीह म लंघिसि जिणवरि भणी, जो रिधि वच्छह सिवसुह तणी। चहुं गति फीटइ फेरउ वडउ, पाच्छइ जाइ उ सिवगढि चडउ ॥ ४ ॥ लीहं बीजी वे उपरि करे, देवु गुरु हीयडइ संभरे । क्षणु एकु मन करिसि प्रमादु, जिभ तुम्हि पाम उ मुक्ति सवादु ॥५॥ पद्य ६-१० तक ओं, न, म, सि, बंधइ से प्रारम्भ होते हैं। यहां पर बंधइ का दूसरा अक्षर लेना चाहिये अथवा पाठ अशुद्ध है; कदाचित् धंधा पाठ हो, देखिये दूहामातृका पद्य ६ । पद्य ११-२६ तक का आदि वर्ण अ आ, इ ई, उ ऊ, ए ए, ओ ओ, भं अ( नुदिन ) है। पद्य २७-५९ तक का आदि वर्ण क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, अ, से ह पर्यन्त है। पद्य ५०-६४ तक का आदि अक्षर जं, क्षु, में, में, जा है। नोट-नं०१ वाले दोनो तथा नं० ६० का पद्य प्रक्षिप्त प्रतीत होते हैं। ४. सम्यक्त्वमाई चउपइ (पृ. ७८, पद्यसंख्या ६४) पद्य १-भले भणउं माई धुरि जोइ, धम्मह मूलु जु समिकतु होइ । समकतु विणु जो क्रिया करेइ, तातइ लोहि नीरु घालेइ ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521626
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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