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२२० ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ ११ __ अर्थात् इस संसारसागर से पार जाने के लिये विद्या और चरण (चारित्र)ये दो ही कहे गये हैं। यहां 'विज्जाए चेव ' और ' चरणेण चेव ' इन दोनों में एवकार लगा देने से अन्य उपायों का निषेध भी किया है। अर्थात् विद्या और चारित्र ये ही दो धर्म सुदुस्तर संसार से पार करने वाला धर्म है अन्य धर्म नहीं है । लेकिन यहां भी 'विधा' शब्द से ज्ञान और दर्शन का ग्रहण किया गया है, क्यों कि सम्यग् दर्शन ज्ञान का ही भेद है । टीकाकार ते भी “ विद्याग्रहणेन दर्शनमपि अविरुद्धं द्रष्टव्यं ज्ञानभेदत्वात् सम्यग्दर्शनस्य । इत्यादि उसीतरह लिखा है।
'संप्रज्ञप्तो द्विधा धर्म इति । ' धर्म दो प्रकार के बतलाये गये हैं, प्रथम श्रुतधर्म, और दूसरा चारित्र धर्म । यह धर्मलक्षण धर्ममर्मज्ञ सर्वज्ञ भगवान् ने स्थानांग सूत्र में कहा है। स्थानांग सूत्र के २ स्थानमें इसी तरह पाठ है-" दुविहे धम्मे पत्नत्ते, तंजहा-सुयधम्मे चेव चारित्तधम्मे चेव " अर्थात् श्रुत, और चारित्र ये दो ही प्रकार के धर्म है। स्वाध्याय(शास्त्रपाठ) को श्रुत कहते हैं और श्रमण अर्थात् सम्यग्दृष्टि साधु के धर्म को चारित्र कहते हैं अथवा श्रुत का अर्थ ज्ञान और दर्शन है इससे भी वही सिद्ध होता है कि सम्यग् दृष्टि सम्यग् ज्ञान
और सम्यक् चारित्र को धर्म कहते हैं । वास्तव में वीतराग भगवान् की आज्ञा ही धर्म है वह सम्यग् ज्ञान सम्यग् दर्शन और सम्यक् चारित्ररूप है । श्री भगवती सूत्र में भी इसी तरह लिखा है कि
"कतिविहो णं भन्ते ! आराहणा पण्णता? गोयमा! तिविहा आराहणा पण्णत्ता, तंजहा-नाणाराहणा देसणाराहणा चारित्ताराहणा । णाणाराहणाण भंते ! कतिविहा पण्णत्ता । गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता । तंजहा उक्कोसिया मज्झिमा जहण्णा । दशणाराहणा णं भंते ! एवंचेव तिविहावि एवं चारित्ताराहणावि".
-[भगवती सूत्र शतक ६ उद्देश १०] । अर्थात् (प्रश्न) हे भगवन् ! आराधना के कितते भेद हैं ? (उत्तर) हे गोतम ! आराधना के तीन भेद हैं, जैसे प्रथम ज्ञानाराधना, दूसरी दर्शनाराधना और तीसरी चारित्राराधना । (प्रश्न) हे भगवन् ! ज्ञानाराधना के कितने भेद हैं ? (उत्तर) हे गोतम ! ज्ञानाराधना के तीन भेद हैं, जैसे उत्कृष्ट ज्ञानाराधना मध्यम ज्ञानाराधना और जघन्य ज्ञानाराधना । इसी तरह दर्शनाराधना और चारित्राराधना के भी तीन तीन भेद समझना चाहिये ।
अब भगवतीसूत्र के उपर्युक्त वाक्यों के सारांश से भी यही सिद्ध होता है कि सम्यम् दृष्टि सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र ही 'धर्म' है, वा उसीको दूसरे नाम से श्रुत और चारित्र कहते हैं।
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