SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - ५५४.] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष १० (७) [८] [ता] कनिष्ठः कुमराभिधः । प्रतिमेयं [व] (८) ........जिना................नुज्ञया । कारिता................॥ - अनुवाद . ओम् । सं. ३० में राजकुल गच्छमें अभयचन्द्रसूरि हुए। उनके शिष्य अमलचन्द्र थे। उनके चरणकमलोके भ्रमर समान सिद्धराज हुआ । उसके बाद ढङ्ग, और ढङ्गसे चष्टक उत्पन्न हुआ। उसकी भार्या रल्हा थी जो (पार्श्व ?) धर्मको मानने वाली थी। उसके जैन धर्ममें तत्पर दो पुत्र हुए-बडा कुण्डलक, और छोटा कुमार ।........की आज्ञासे यह प्रतिमा बनाई गई है। नोट लेखमें आया 'गच्छ' शब्द कह रहा है कि अभय चन्द्रसूरि श्वेताम्बर थे। जैन न्यायके सुप्रसिद्ध ग्रन्थ 'सन्मतितर्क' पर टोका करनेवाले तर्कपञ्चानन अभयदेवसूरि राजगच्छके ही थे। कदाचित् ये ही इस लेखके अभयचन्द्रसूरि हो । २. कीरग्राममें बैजनाथ-मंदिरका जैन लेख भगवान् महावीरको प्रतिमाकी गद्दोके तीन तरफ खुदा हुआ है । यह अब तक साफ २ पड़ा जाता है । इसको केवल दो पंक्तियां हैं। इसमें बतलाया है कि दोल्हण और आल्हण नामके दो बनियोंने कीरग्राममें महावीरका मंदिर बनवाकर यह प्रतिमा स्थापित की थी। ये दोनों भाई ब्रह्मक्षत्रगोत्रके गुजराती बनिये थे। यह गोत्र पंजाबमें नहीं मिलता, गुजरातमें अब तक विद्यमान है। लेख ___ओं संवत् १२९६ वर्षे फागुण वदि ५ रवौ कीरनामे ब्रह्मक्षत्रगोत्रोत्पन्न व्यव. मानपुत्राभ्यां व्य० दोल्हणआल्हणाभ्यां स्वकारित श्रीमन्महावीरदेवचैत्ये ॥ श्रीमहावीर जिनमूल बिंब आत्म श्रेयो[0] कारितं । प्रतिष्ठितं च श्रीजिनवल्लभसूरिसंतानीयरुद्रपल्लीय श्रीमदभयदेवसूरिशिष्यैः श्रीदेवभद्रसूरिभिः ॥ अनुवाद ओं सं. १२९६ में फागन बदि ५ रविवारके दिन कोरग्राममें ब्रह्मक्षत्रगोत्रीय व्यवहारी मानूके पुत्र व्यवहारी दोल्हण और आल्हणने अपने बनवाये श्रीमहावीर भगवान्के मंदिरमें महावीरकी मूल प्रतिमा अपने पुण्यार्थ बनवाई। इसकी प्रतिष्ठा जिनवल्लभसूरिसन्तानीय रुगपल्लीय अभयदेवके शिष्य भद्रसूरिने कराई । For Private And Personal Use Only
SR No.521613
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy