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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जैन विद्या भवन, कृष्णनगर, लाहौर. आषाढ कृष्णा ८, सं. २००१. ११] જૈન ઇતિહાસમે કાંગડા [ २४३ 66 -P क्या ही अच्छा हो यदि इस नामशेष तीर्थका फिर पुनरुद्धार किया जाय । पंजाब और मध्य प्रान्त के जैन समुदायका कर्तव्य है कि वह अपने निकटके इस महातीर्थ का उद्धार करे।" श्रीमान् जिनविजयजीके इन वचनोंसे प्रेरित होकर पंजाब में आचार्य श्रीमद् विजयवल्लभसूरिजीने इस तीर्थ पुनरुद्धारका प्रयत्न किया । सं. १९९७ में स्वयं आचार्य महाराजने गरमीसरदीके परिषहों को सहते हुए बडे उत्साह के साथ इस भव्य तीर्थ की यात्राकी, परंतु खेद है कि सरकारने आचार्यश्री की साथ पूरी नहीं होने दी। अभी कुछ नहीं बिगडा । यदि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों मिलकर उद्यम करें, तो आशा है कि उन्हें सफलता प्राप्त हो । सबसे पहले दोनों संप्रदायोंकी एक साझी कमेटी बनाई जाय जो इस रमणीय प्रदेशका अच्छी तरह निरीक्षण करे और आपस में अपने २ तीर्थका निर्णय करके गवमिंटसे लिखा पढी करे । (सम्पूर्ण) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट १. आदिनाथ भगवान् की मूर्तिके नीचेका लेख । डा. बूल्हर इसे पार्श्वनाथ की मूर्तिका लेख कहते हैं . ( Epigraphia Indica Vol. I p. 120 ) | यह लेख कांगडा शहरमें इन्द्रेश्वरके मन्दिर में आदिनाथकी गद्दी पर खुदा है। इसमें आठ पंक्तियां हैं । वहांके लोग इस मूर्तिको भैरवको मूर्ति समझकर इसकी तेल और सिंधूरसे पूजा करते हैं। तेल और सिंधूरका इस पर इतना दल चढ गया है कि लेखके कई अक्षर बिल्कुल मद्रम पड़ गये हैं । अंतिम पंक्ति तो टूट ही गई है । इसके अक्षर सारदा लिपिके हैं । इसमें सं. ३० दिया है जो सप्तर्षि या लौकिक संवत् है । इसमें शताब्दियां छोड दी जाती हैं । इस लिये शताब्दीका निर्णय नहीं किया जा सकता, संभवतः नवमी शताब्दीका होगा । लेख (१) ओम् संवत् ३० गच्छे राजकुले सूरिरभूद(२) भयचंद्रमाः [1] तच्छिष्योमलचंद्राख्य [स्त](३) पदांभोज षट्पदः [ ||] सिद्धराजस्ततः ढङ्गः ( ४ ) ढङ्गादजनि [च]ष्टकः । रल्हेति गृ[िहणी] [त(५) स्यं ] पा - धर्म - यायिनी । अजनिष्टां सुतौ (६) [तस्य ][ [ जैन ] धर्मध (प) रायणौ । ज्येष्ठः कुण्डलको I For Private And Personal Use Only
SR No.521613
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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