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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष १० और यात्रा करके किस दिन यहां वापिस आया । तथापि इसमें दो तिथियों का निर्देश है जिनके आधार पर यात्रा - समयका अनुमान किया जा सकता है । इनमेंसे एक तिथि है वैशाख शुदि ११ ( माधवमासि धवलैकादशीवासरे । पृ. ३५ ) ३८ | उस दिन हिरियाणा में जो शायद आज-कल के हरीके पत्तनके पास था और जहां चार देशों की सीमायें मिलती थीं, भारी जलसा किया गया । ३९ वहां वर्षाके कारण संघको पांच दिन रुकना पडा । अतः हिरियाणासे यात्रीगण ज्येष्ठ वदि १-२ ( गुजराती वैशाख वदि १-२ ) को आगे चले होंगे । हिरियाणा से कांगडा १२५ मीलके लगभग है । १०-१२ मील प्रतिदिन हिसाब से यह मार्ग १०-१२ दिनमें तय हुआ होगा । कांगडेमें संघ ज्येष्ठ शुद्धि ५ को पहुंचा । रास्तेमें ५-७ दिन और कहीं ठहर गया होगा। कांगडेमें १० दिन ठहर कर आषाढ वदि १ (गुज़राती ज्येष्ठ वदि १) को वापिस हुआ । वापिसीका मार्ग पहले रास्ते से काफी भिन्न प्रतीत होता है । आषाढ शुदि १४ को चातुर्मास प्रारम्भ हो जाता है, अतः संत्र २० दिनमें सप्तरुद्र तक आ गया होगा । वहांसे दो-तीन दिनमें नावों द्वारा दीपालपुर वापिस आकर और ५-७ रोज दीपालपुर में ठहर कर आषाढ शुदि १३-१४ तक फरीदपुर वापिस आ गया होगा । इस प्रकार हमारा अनुमान है कि संघ फरीदपुर से वैशाख शुदि १ या उससे दो-चार रोज आगे पीछे चला होगा और आषाढ शुदि १३-१४ को वापिस आ गया होगा । कुल अढाई मास, या दो चार दिन न्यूनाधिक, यात्रामें लगे । -xxx विज्ञप्तित्रिवेणिकी अपनी प्रस्तावना में पृ. ९५ पर श्रीमान् जिनविजयजी लिखते हैं३८. अपनी प्रस्तावनामै श्रीमान् जिनविजयजी माधवसे चैत्र मास लेते हैं, लेकिन कोर्षों में वैशाख दिया है । जैसे वैशाखे माधवो राघो......। अमरकोश, ४ । १६ । वैशाखे राधामाधवौ । हेमचन्द्रकृत अभिधानचिन्तामणि, २ । ६७ । चैत्र मानने से हरियाणासे कांगडा तक ५० दिन लगते हैं, लेकिन वापिसी पर कांगडेसे फरीदपुर तक आने में एक माससे अधिक नहीं लगता, क्योंकि कांगडेसे ज्येष्ठ पूर्णिमाके अगले दिन चल पडते हैं और चतुर्मास प्रारम्भ होनेसे पहले फरीदपुर आ जाते हैं । कुछ दीपालपुर भी ठहरते हैं । अगर जानेमें दो मास लगें, लगना संभव नहीं । बीचमें दस दिन कोठीपुर और तो वापिसीमें केवल १५ दिन ३५. हिरियाणाको हरीकेपत्तनके निकट मानने में यह आपत्ति है कि विज्ञप्तित्रिवेणिके अनुसार हिरियाणासे आगे पहाडी रास्ता था । तत्र (हिरियाणा स्थाने ) महात्रतमिता वासरा अवस्थानमवेक्ष्य लग्नाः । अथ सपादलक्षपर्वतभुवं सह संघेनोल्लङ्घयितुं यथावत् प्रवृत्ताः पृ० ३६ । लेकिन हरीकेपत्तनसे मीलों तक मैदानी रास्ता हैं । अलबत्ता होशियारपुर के निकटवर्ती हरियाना स्थानसे पर्वतप्रदेश शुरू हो जाता है लेकिन वहां चार देशोंको सीमायें नहीं मिलतों । For Private And Personal Use Only
SR No.521613
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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