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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४. ॐ १० ] છત્તીસગઢ પ્રાન્તમે પ્રાચીન ભિત્તિચિત્ર [ २२५ " किन्तु उन चित्रोंकी सुन्दर रेखाएं उनके ऊपर फिरसे खिंचे गये भद्दे चित्रोंमें छिप गई है । बचे सुखे अंशोंसे अनुमान होता है कि वहाँके कुछ चित्रोंका विषय जैन था । "( भारतकी चित्रकला, पृ. ११-२ ) 1 उपर्युक्त गुफामें एक प्राकृत भाषाका लेख भी पाया गया है, जिसकी लिपि डॉ. ब्लाख मतसे ३ सदी ई. स. पूर्वकी है। इस गुफाके पार एक और गुफा है जो सीताबंगरा के नामसे ख्यात है । प्रथम तो लोगों का ख्याल था कि यह नाट्यशाला है, पर पश्चात् एक लेख उपलब्ध हुआ जिससे विदित हुआ कि वह वरुणमंदिर था । ये गुफा भी ई. स. पूर्वकी तीसरी सदो की है । - रामगिरि पर्वत – संस्कृत साहित्य के अभ्यासियों को विदित है कि - महाकवि कालिदासने अपने 'मेघदूत' खण्डकाव्य में रामगिरि पर्वतको अमर कर दिया। पं. नाथूरामजी प्रेमीका मानना है कि कालिदासकथित रामगिरि पर्वत यही है, क्योंकि वह दण्डकारण्य - अन्तर्गत है और कर्णरवा नदी संभवतः महानदी हो । प्रेमीजा आगे लिखते हैं कि उग्रादित्याचार्य जोने अपना "C कल्याणकारक " नामक आयुर्वेदिक ग्रन्थ इसी रामगिरि पर्वतपर रचा था । इन बातोंमें चाहे जितनी वास्तविकता हो, पर इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि किसी समय इस प्रान्तमें जैनधर्म विस्तार के साथ फैला हुआ था, जिसका प्राचीन प्रमाण गुफाचित्र हैं । जिस समयकी गुफा बनी हुई है उस समय यहाँ मौर्यों का साम्राज्य था । T सम्प्रति सम्राट् जैन थे । संभव है उन्होंने ही यह गुफा बनवाई हो । और भी अनेक उदाहरण ऐसे दिये जा सकते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि पुरातन कालमें जैन संस्कृति यहाँ पर खूब विस्तारसे फैली हुई थी । इस विषय में आगे कभी प्रकाश डालने की भावना है। बूढापारा. ता. २०-५-४१ शतनुकनाम देवदशिन्यि तं कमयि थ बलनशेयी देवदीन नाम लूप दखे । " कौसलरत्नमाला ५. अदिपयन्ति हृदयम् स भाव गहकवयो । + + + इति तयम + + + दुले वसन्ति या । हि सावानुभूते कुदस ततं एवं अलंता । " ' वेंगीशत्रिकलिंगदेश जननप्रस्तुत्य सानूत्कटः प्रोद्य वृक्षलताविताननिरतैः सिद्धैश्व विद्याधरैः । सर्वे मंदिर कंदरोपम गुहाचैत्यालयालंकृते रम्ये रामगिराविदं विरचितं शास्त्रं हितं प्राणिनाम् ॥ A Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" For Private And Personal Use Only पृ० ३ । इस लोक में रामगिरिके लिये जो विशेषण दिये हैं, गुहामंदिरों और चैत्यालयोंकी जो बात वह भी इस रामगिरिके विषय में ठीक जान पडती है । उमादित्यके समय भी वह सिद्ध और विद्याधरोंसे सेवित एक तीर्थ जैसा ही गिना जाता। "-" जैन इतिहास और साहित्य” पृ० २१२ ( नागपुरसे २५ मील दूर एक रामगिरि है जो रामटेक कहलाता है ) ।
SR No.521612
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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