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२२४] श्री सत्य प्रश
[ वर्ष १० पाई जाती हैं, जो ऐतिहासिक और शिल्पकलाकी दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वकी हैं । मैं तो यहां मात्र दो ही गुफाओंका संक्षिप्त परिचय देना उचित समझता हुँ । प्राचीन भारतमें भित्तिचित्र
भारतीय प्राचीन साहित्यके अध्ययनसे सिद्ध होता है कि उस समय घरोंमें भित्तिचित्र-आलेखनकी प्रणालिका थी। सुरसुंदरीकहा, तरंगवती, कर्णसुंदरी, कथासरित्सागर, बृहत्कथामंजरी आदि ग्रंथों में कई भित्तिचित्रोंका उल्लेख मिलता है। ये चित्र कई प्रकारके होते थे और समय समय पर भिन्नभिन्न रस उत्पन्न करते थे । धार्मिक चित्र भो उल्लिखित करानेका रिवाज था, जिसके फलस्वरूप अजंटा, बाघ, सितन्नवासल, बादामी, वेरुल आदि गुफाएं हैं। ठीक इसी प्रकार प्रस्तुत प्रान्तमें भी उस समय चित्रकलाका प्रचार था। मुझे यह लिखते हए हर्ष होता है कि-संसारमें उपलब्ध भित्तिचित्रों में से सबसे प्राचीन भित्तिचित्र इस प्रान्त में प्राप्त हैं।
सिंहनपुर-यह नगर रामगढ स्टेटके अंतर्गत है । यहांकी गुफामें प्राचीन भित्तिचित्र प्राप्त हैं, जो प्रागैतिहासिक बतलाये जाते हैं, जिनका समय १०००० (दश हजार ) वर्ष निश्चित किया गया है। पर इसकी ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया । यदि सम्पूर्ण रूपसे अध्ययन हो तो निस्सन्देह बहुत कुछ ज्ञातव्य प्रकट होनेकी संभावना है।
जोगीमारा-इस प्रान्तके सरगुजा राज्यके अंतर्गत लक्ष्मणपुरसे १२ मील रामगिरि-रामगढ नामक पहाडी है । वहां पर जोगीमारा नामक गुफा है। यह पहाडी २६००० फिट ऊंची है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य बडा ही आकर्षक और शांतिप्रदायक है। गुफाकी चौखट पर बडे हि सुन्दर चित्र अंकित हैं । ये चित्र ऐतिहासिक दृष्टि से प्राचीन हैं । चित्रपरिचय इस प्रकार है
(१) एक वृक्षके निम्न स्थानमें एक पुरुषका चित्र है । बांई ओर अप्सराएं व गंधर्व हैं । दाहिनी ओर सहस्ति एक जुलूस खडा है।
(२) अनेक पुरुष, चक्र तथा भिन्न भिन्न प्रकारके आभूषण हैं। मेरी रायमें उस समयके आभूषण और आजके आभूषणोंमें बहुत कम अंतर है, और सामानिक दृष्टि से इनका अध्ययन अपेक्षित है।
(३) अर्धभाग अस्पष्ट है । एक वृक्ष पर पक्षि, पुरुष और शिशु हैं। चारों ओर मानव-समूह उमडा हुआ है, केशोंमें ग्रंथी लगी है।
(४) पद्मासनस्थ पुरुष है, एक ओर चैत्यकी खीडकी है तथा तीन घोडोंसे जुता हुआ रथ है।
उपर्युक्त वर्णनसे स्पष्ट हो जाता है कि ये चित्र जैनधर्मसे संबंधित हैं, परंतु संरक्षणके अभावसे चित्रों की हालत खराब हो गई है । इस बारेमें राय कृष्णदासने लिखा है कि
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