________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छत्तीसगढ प्रान्तमें प्राचीन भित्तिचित्र
___ लेखक-पूज्य मुनिमहाराज श्रीकांतिसागरजी प्रस्तुत प्रान्तका उपर्युक्त नाम नूतन प्रतीत होता है, क्योंकि प्राचीन साहित्य तथा शीलालेखों व ताम्रपत्रोंमें इस प्रान्तका प्राचीन नाम महाकोशल या दक्षिणकोशल बतलाया गया है। सम्राट् समुद्रगुप्तकी अल्लाहाबादस्थित 'प्रशस्तिमें प्रान्तका नाम महाकान्तार पाया जाता है। उसमें लिखा है - कौशल और महाकान्तारके महेन्द्र और व्याघ्रराज पर समुद्रगुप्तने अपना आधिपत्य जमाया। तदनंतर मुगल इतिहासकारोंने इसका नाम गोंडवाना रखा, क्योंकि यहां गोडजातिकी वसति अधिक है और १३ वीं शताब्दिसे १७वौं शताब्दि तक उन लोगोंका राज्य भी इस प्रान्तके कई भागोंमें था। बादमें भोंसलोंने अपने अधिकारमें किया और उनसे अंग्रजोंने ले लिया। यह स्पष्टतः कहना कठिन है कि छत्तीसगढ नाम क्यों और कब पड़ा । यों तो छत्तीसगढ प्रान्तका प्रारम्भ डोंगरगढके पास बोर तलावसे शुरू होता है, पर शासनको सुविधाके लिये बालाघाट और भंडारा जिला भी इस विभाग (Division )में सम्मिलित है । वर्तमानमें इस प्रान्तमें भंडारा, बालाघाट, गुग, रायपुर और विलासपुर ये पांच जिले हैं । इन पांच जिलोंका इतिहास इतना महत्त्वपूर्ण है कि यदि इनका विकास हो तो निस्सन्देह भारतीय इतिहास और संस्कृतिके बहुतसे प्रश्न हल हो सकते हैं ।
यहांपर प्राचीन कलापूर्ण अवशेष हजारोंकी संख्यामें अत्रतत्र बिखरे पड़े हैं, जिनमें पद्मपुर, गुग, औरंग, श्रीपुर, रतनपुर, शिहावा, भंडारा आदिके अवशेष मुख्य हैं । इनसे विदित होता है कि संसारकी सभी उन्नत कलाओंका विकास यहां पर हुआ था। यहांके शिल्पमें मौलिकताका अपार आनन्द अनुभव होता है । यहांकी गृहनिर्मागकला उच्च कोटीकी थी, जिनके प्राचीन नमूने आज भी पुरातन गुफाओंमें मिलते हैं । यहांका वन-वैभव आज भी लोगोंको आश्चर्यान्वित किये बिना नहीं रहता। यहां खानोंकी भी बहुलता है। इन सभी बातोंके होते हुए भी यहांके लोगों की हालत इतनो शोचनीय है कि-प्रातःकालको भोजन मिला तो शामके भोजनकी चिंता रहती है । इसका खास कारण है अशिक्षा । यहां सरीखे अशिक्षित एवं भोली प्रकृतिके लोग अन्यत्र शायद ही मिलें । इस प्रान्तमें भौतिक सम्पत्तिका अभाव भले ही हो, पर आध्यात्मिक संस्कृतिकी साधनाके लिये यह प्रान्त अत्यन्त उपयुक्त है।
यहां पर मौर्य, गुप्त, राजर्षिकुल, राष्ट्रकूट, कलचूरी, गोंड, भोंसलों आदि वंशों का राज्य क्रमशः रह चुका है। यहां पर पहाडोंकी बहुलता होनेसे गुफाएँ अधिक संख्यामें
१. "कौशलक-महेन्द्र-महाकान्तारक-व्याघ्रराज"।
२. कवि कालिदासकृत 'रघुवंश 'में भी इसका नाम आता है, जिससे लोग अनुमान करते है कि-कालिदास गुप्तोंके समयमें हुए हैं ।
३. गोंडजाति यहांकी अनार्यजातियों से एक है । मैं इस जातिपर एक विस्तृत निबंध लिख रहा है। इस जातिके अतिरिक्त ४५से अधिक जातिये ऐसी हैं जिनका अध्ययन मानवविज्ञानको दृष्टिसे आवश्यक है । अन्य प्रान्तमें इतनी विशाल सामग्री शायद ही प्राप्त हों ।
For Private And Personal Use Only