SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ वर्ष १० राजोंके दर्शन करके वह बहुत प्रसन्न हुआ। वहांसे चलकर संघ तलपाटक१७ पहुंचा। वहां १८देवपालपुर (दीपालपुर) के श्रावक संघसे मिलने आये । अब ब्यासके किनारे २ चलता हुआ संघ मध्यदेशमें १९ पहुंच गया। जब वह इस देशमेंसे गुजर रहा था तो उसको खोखर२ सरदार यशोरथ२१ (जसरथ) और शकन्दरं२२ ( सिकंदर )की सेनाओंके युद्धकी सूचना मिली और दोनों सेनाओंका कोलाहल सुनाई देने लगा । यह सुन यात्री लोग बहुत घबराये। अब संघ कुछ पीछे लौटा और फिर विपाशा तटका आश्रय लिया । नावों द्वारा जल्दीसे उसे पार किया और कुंगुद२३ नामके घाटमें होकर मध्य, जाङ्गल, जालंधर और काश्मीर इन चारों देशोंकी सीमाके मध्यमें रहे हुए हिरियाणा२४ नामके स्थानमें जा पहुंचा । वहां कानुकयक्षके२५ मंदिरके निकट चैत्र सुद ११ के दिन बड़ा जलसा किया। १७. तलपाटकका आधुनिक रूप तलवाड़ा हैं । इस नामके कई स्थान हैं । एक तो होशियारपुर जिलेमें ब्यासके किनारे पर है और होशियारपुरसे २५ मील पूर्वोत्तर में है। विज्ञप्तित्रिवेणिका तलपाटक इससे भिन्न होना चाहिये, क्योंकि वह दीपालपुरके पास होगा और इसी लिये दीपालपुरके श्रावक वहां आये । १८. देवपालपुरका आधुनिक नाम दीपालपुर है । गह भी पुराने ब्यासके किनारे पर था। १९. रावी और ब्यासके मध्यवर्ती मैदानी इलाका जिसे आजकल 'माझा' कहते हैं। इसमें लाहौर और अमृतसरके जिले शामिल हैं। २०. खोखर पंजाबकी एक हिन्दु जातिका नाम था । इस जातिके लोग बड़े कलहप्रिय थे। २१. जसरथ नामी इनका सरदार बड़ा बलवान् था । उसने सन् १४२८ (सं० १४८५, गुजराती गणनासे १४८४ )में दिहलीके विरुद्ध विद्रोह किया । दिहलीकी और जसरथकी सेनाओंका परस्पर युद्ध माझा देशमें हुआ । इसीका निर्देश विज्ञप्तित्रिवेणिमें हैं । -Cambridge History of india, Vol. III p. 201. २२. सिकन्दर तोहफा जिसने जसरथका मुकाबिला किया । २३. यह ब्यासके किसी पत्तनका नाम है जो शायद आज कलके हरीके पत्तनके पास हो, क्योंकि यहांस ब्यासको पार करके संघ जालंधर दोआबमें प्रविष्ट दुभा जहां काश्नीर, जालंधर, जाङ्गल और मध्यदेशकी सीमायें मिलती हैं । ऐसा स्थान हरीके पत्तनके पास होना चाहिये । ऐसा प्रतीत होता है कि संघ मध्यदेशमें होता हुआ पठानकोट, नूरपुर आदिके रास्ते कांगड़ेको जाना चाहता था, लेकिन जसरथ और शाही सेनाके युद्धके कारण उसे पीछे हटना पड़ा और फिर वह जालंधर दोआबमें होकर कांगड़े पहुंचा । इसी लिये एक बार फिर ब्यासको पार करना पड़ा । २४. यह स्थान सतलुज और ब्यासके संगमके पास होना चाहिये, क्योंकि वहाँ. ही चार देशोंकी सीमायें मिलती हैं । आजकलका हरियाणा जो होशियारपुरसे १० मील उत्तरकी ओर है, विज्ञप्तित्रिवेणिका हिरियाणा नहीं हो सकता। .. २५, कानुकयक्ष कदाचित् कांगड़े प्रान्तका 'कासावजख' हो । For Private And Personal Use Only
SR No.521612
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy