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જૈન-ઇતિહાસમે કાંગડા
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यहां संघको पांच दिन ठहरना पड़ा, क्योंकी बड़ी घोर वर्षा हुई और ओले पड़े । छठे दिन सबेरे ही कूच करके सपादलक्ष ( सवालक) पर्वतकी तंग घाटियोंको लांघता हुआ और पहाड़ी दृश्योंको देखता हुआ संघ फिर विपाशा के किनारे आ पहुंचा। उसे पार कर गांवों में होता हुआ संघ २६ पातालगंगा के तट पर आ गया । उसे निरायास पार कर लिया। आगे बढ़ते हुए और पर्वत शिखरों को पैरों तले कुचलते हुए संघने दूरसे सुनहरी कलशवाले मंदिरो की पंक्तिसे सुशोभित नगरकोटको देखा । नगरकोटके नीचे बाणगंगा २७ बहती है, उसे उतर कर संघ गांवमें जानेकी तैयारी कर रहा था कि सामनेसे नगरकोटके संघने उसका स्वागत किया और बड़े ठाठबाउसे नगर में उसका प्रवेश कराया । यह सं० १४८४ के ज्येष्ठ सुदी पंचमीका दिन था। गांवमें पहुंचते ही संघने सबसे पहले साधु२८ क्षीमसिंह के बनवाये शान्तिनाथ के मंदिर के दर्शन किये । फिर राजा २९रूपचंद के बनवाये महावीर भगवानके मंदिरके दर्शन किये। वहांसे आदिनाथ भगवानके तीसरे मंदिरमें गये ।
इस प्रकार शहरके तीनों मंदिरोंके दर्शन करके संघने उस दिन विश्राम किया । अगले दिन प्रातः काल शहर के पास पहाड़ी पर कङ्गदक २० (कांगड़ा) नामका जो किला है और जिसमें आदिनाथ भगवानका प्राचीन और सुंदर मंदिर है उसकी यात्रा के लिये संघने प्रस्थान किया । किले में जानेके लिये राजमहलों के बीच में होकर जाना पडता था । इस लिये राजा नरेन्द्रचन्द्रने १३ जो उस समय वहांका राजा था, अपने नौकरोंको हुकम दिया कि संघके आने जानेमें किसी प्रकारका विघ्न न डालें । सात ३२ दरवाजोंमेंसे गुजर कर संघने किले में प्रवेश
२६. इसे गुप्तगंगा भी कहते हैं । यह सोतों और प्रपातोंसे बनकर अदृश्य हो जाती है । शायद इसी लिये 'गुप्त' या 'पाताल' गंगा कहलाती है ।
२७. बाणगंगा अबतक कोट कांगडाके नीचे बहती है । यहां भी तीन छोटी नदियोंका एक संगम 'त्रिवेणि' कहलाता हैं ।
१८. साधु शब्दसे 'साह', 'शाह' का तात्पर्य हैं ।
२९. कनिंघम मतानुसार राजा रूपचन्द्र दिहलीके सम्राट् फीरोजशाह तुगलकका समकालीन था । इसका अनुमानित समय सन् १३६० है ।
३०. कांगड़ा शब्दका संस्कृतरूप, जो अन्यत्र कहीं नहीं मिला ।
३१. कर्निघमने नरेन्द्रचन्द्रको अनुमानित तिथि सन् १४६५ (रिपोर्ट पृ० १५२) दी है, पर विज्ञप्तित्रिवेणिके अनुसार वह सन् १४२८ में जीवित था ।
३२. कोटमें प्रवेश करते समय सबसे पहले एक चौक आता है जिसके दो दरवाज़े हैं । इन्हें 'फाटक' कहते हैं और ये सिक्खोंके समयमें बने थे । चौकके आगे आहनी ( लोहमय ), अमीरी, जहांगीरी, अन्धेरी या हन्देली, दर्शनी ( मंदिरोंवाले चौकका दरवाजा ) और महलों बाले दरवाजे हैं ।
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