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જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१र्ष १० ___ कांगड़ेके अवशेषोंको ध्यानमें रखते हुए हम कह सकते हैं कि कांगड़ा जैनधर्मका एक महातीर्थ होगा, लेकिन इस बातका उल्लेख न तो किसी दिगम्बर तीर्थावली जैसे–प्राकृत निर्वाणभक्ति, संस्कृत निर्वाणभक्ति आदिमें, और नहीं विविधतीर्थकल्प आदि श्वेताम्बर ग्रन्थों में मिलता है। पं० नाथूरामप्रेमीके कथनानुसार "बहुतसे तीर्थ-स्थान एक समय बहुत प्रसिद्ध थे परन्तु इस समय उनका पता भी नहीं है कि वे कहां थे और क्या हुए। इसी तरह जहां कुछ भी न था, या एकाध मन्दिर ही था, वहां बहुतसे नये नये मन्दिर निर्माण हो गये हैं
और पिछले सौ दो-सौ बरसोंमें तो, वे स्थान मन्दिरों और मूर्तियोंसे पाट दिये गये हैं। उनको प्राचीन तीर्थके रूपमें प्रसिद्ध करनेके भी प्रयत्न किये गये हैं। यह भी इतिहासकी एक महत्त्वकी सामग्री है।"१२ .. तीर्थों जैसी महत्ता होने पर भी कांगड़ेकी तीर्थरूपसे प्रसिद्धि नहीं । हर्षकी बात है कि मुनि जिनविजयजीकी अथक खोज और परिश्रमसे एक ऐसा ग्रन्थ हाथ लग गया है जिसमें कांगड़ेको महातीर्थ कहा है । यह ग्रन्थ है विज्ञप्तित्रिबेणि,१३ जो वास्तवमें चातुर्मासिक वृत्तान्तकी एक रिपोर्ट है जिसे उसके लेखकने अपने गुरुमहाराजकी सेवामें भेजा था। इसको सं० १४८४में खरतरगच्छीय उपाध्याय जयसागरने अपने गुरु जिनभद्रसूरिके पास मेजनेको लिखा था।
विज्ञतित्रिवेणिमें प्रधान वर्णन कांगड़ेकी यात्राका है । एक आगन्तुकके मुंहसे कांगड़ातीर्थकी शोभा सुन कर उपाध्याय जयसागरके मनमें आया कि हम भी ऐसे भव्य तीर्थके दर्शन करें । जब फरीदपुरके१४ श्रावकोंको, जहां उपाध्यायजी उस समय ठहरे हुए थे, उनके
१२. “जैन साहित्य और इतिहास" । बम्बई १९४२ । पृ. १८५ ।
१३. विज्ञप्तित्रिवेणि एक विज्ञप्तिपत्र है । विज्ञप्तिपत्र खास देखने और पढ़ने योग्य होते थे। इनके लिखने में बहुतसा द्रव्य और समय खर्च होता था । ये जन्मपत्रीके आकारके काग़ज़के लम्बे टुकड़े होते थे । कोई २ तो ६० फुट होता था । इनपर नगर, मन्दिर आदिके चित्र भी होते थे । सन् १९४२में डा० हीरानन्द शास्त्रीने विज्ञप्तिपत्रोंका एक संग्रह प्रकाशित किया है।
विज्ञप्तित्रिवेणि तीन वेणियोंमें विभक्त है । पहली वेणिमें तीर्थंकरोंकी स्तुति, गुजरात देश और अणहिल्लपाटक (पाटण) नगरका वर्णन है । तदुपरान्त जिनभद्ररि और उनके शिष्यसमुदायका गुणगान किया है। फिर सिन्धुदेश और मलिकवाहन, फरीदपुर आदि नगरोंका उल्लेख है। दूसरी वेणिमें कांगड़ेकी यात्राका विशद वर्णन है । तीसरी वेणि सबसे छोटी है। इसमें यात्रासे वापिस आकर चौमासको धर्मक्रियाभोंका उल्लेख है ।
१४. फरीदपुर शब्दसे विदित होता है कि इस स्थानका संबन्ध प्रसिद्ध मुस्लिम सन्त बाबा फरीदसे होगा । पाकपटन (जिला मिंटगुमरी )में बाबा फरीदका मकबरा है और लोगोंमें दन्तकथा चली आती है कि बाबा. साहिब यहीं रहते थे । पाकपटनका ही पुराना नाम फरीदपुर प्रतीत होता है यद्यपि फारसी पुस्तकोंमें पाकपटनका नाम “ अजोधन " मिलता है ।
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