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श्री. प्राननी sax-था (३) सीसत्थमागया जे तत्थ भडा उब्भडा निवा एसा । ते तह तओ पलाणा जह विट्ठा नेव दिट्ठीए ॥५४॥
[ हयपडिणीय-पयावो रचना ] M197—“Those mighty warrior kings, who had come there for the sake of their heads, fled then so that they could not be seen at all by sight." [ पृ. ८१ ]
यहां ब्राउनने " निवा एसा" को दो पद " नृपा एते " माना है, परंतु वास्तवमें "निवाएसा" समस्त पद है जिसका संस्कृत रूप " नृपादेशात् " है। और फिर "एसा" स्त्रीलिङ्ग एकवचन है जो पुं० बहु० "नृपाः" का विशेषण नहीं हो सकता । शाहिका सिर लेनेको शाहानुशाही अर्थात् नृपकी आज्ञासे भट आये थे, न कि स्वयं नृप । (४) उत्तरिउं सिंधुनई कमेण सोरठमंडले पत्ता । ते ढंकगिरि-समीवे ठिया दिणे कइवि मंत-वसा ॥५५॥
[ हयपडिणीय-पयावो रचना ] ब्राउन-" They crossed the river Indus and in time came to the land of Saurashtra ( Surat). They stopped for some days at mount Dhanka under a spell." [ पृ. ८१ ]
यहां मंतवसा सं. मन्त्रवशात् में ब्राउनने मन्त्र शब्दका साधारण अर्थ लिया है जिसकी प्रसंगसे पुष्टि नहीं होती। मन्त्रसे यहां तात्पर्य मन्त्रणाका है अर्थात् मन्त्रणा (सलाह, मशविरा) करनेके लिये ठहर गये ।
(५) चित्र नं. ७ (प्लेट नं. ३ ) में दो श्वेताम्बर मुनियों का चित्र है । इनके बायें हाथमें मुखवत्रिका है और इन्होंने दायें हाथके अंगूठेको तर्जनी अंगुलिसे मिलाकर शेष अंगुलियोंको पृथक् छोड़ रखा है । ब्राउनने इस हस्तमुद्रा (ज्ञान मुद्रा ? ) को फूल समझा हैं और वे लिखते हैं " Beneath a canopy sit two Svetambara monks preaching. Each has in his left hand the mouth cloth and in his right hand a flower.”
(१) चित्र नं. १९ (प्लेट ८) कालकसूरिका चित्र है। उनके दायें हाथकी वही मुद्रा है जो उपर्युक्त चित्र नं. ७ के मुनियों की है। ब्राउन इसे भी फूल समझते हैं और लिखते हैं। “Under a canopy, on a spired throne sits the monk Kalaka holding a flower in his outstretched left hand."
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