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१२० ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[वर्ष १० इस प्रकार कथा-पाठों और चित्रोंके समझनेमें पूरा प्रयत्न करने पर भी कई स्थानों पर प्रो० ब्राउन उनका शुद्ध आशय नहीं पा सके । जैसे(१) गुरु-आणाइक्कमणे आयाविंतो करेह जइ. वि तवं । तह वि न पावइ मोक्खं पुव्वभवे दोवई चेव ॥१०॥
[ अज्ञातकर्तृक बृहद्रचना ] ब्राउनका अर्थ-" Even though one does penance submitting to the burning heat of the sun, if he does not do his master's commands, he will nevertheless not attain salvation, although . he might have been the lord of heaven himself in a previous existence.” (100) पृ. ६५.
यहां पर ब्राउनने “ दोवई "का अर्थ "धुपति इन्द्र", और " चेव" का अर्थ "च+एव" समझा है, परंतु वास्तवमें दोवईका अर्थ है द्रौपदी और चेवका अर्थ है च + इव (अर्धमागधी कोष भाग ५, पृ. २८८)। क्योंकि पूर्व जन्ममें इन्द्रने अपने गुरुकी आज्ञाका भङ्ग किया हो, ऐसा पाठ कहीं नहीं मिलता, अलबत्ता द्रौपदीने सुकुमालिका नामक अपने पूर्वभवमें अपने गुरुणीकी आज्ञा भङ्ग को थी । एकबार सुकुमालिकाने अपनी गुरुणीसे नगरके बाहर जाकर सूर्यकी ओर निहारते हुए और धूप तापते हुए अकेले रहकर तप करनेकी आज्ञा मांगी । इस पर गुरुणोने उत्तर दिया कि हम साध्वियोंको नगरके बाहर अकेले रहकर तप करना उचित नहीं । सुकुमालिका न मानी और अकेले ही तप करने नगरके बाहर चली गई। देखिये नायाधम्मकहाओ, श्रुतस्कन्ध १, अध्ययन १६ । (२) दूधई साँचिउ लींबदओ घाण किउं गुलेण । तोइ न छंडइ कडुअपणु जातिहिंतणइं गुणेण ॥२०॥
[ हयपडिणयी--पयावो स्वना ] ब्राउन-“ Let (the fruit ) of a lime tree be sprinkled with milk and mixed in the frying-pan with raw sugar, still it does not lose its bitterness, such is the quality of its native characteristics." [पृ. ७९]
यहां ब्राउनने " लीवदओ" से निम्बू या लीमू समझा है, पर वास्तवमें इसका अर्थ है " नीमका वृक्ष । देखिये अर्धमागधी कोष, भाग ५, शब्द " लिंच " पृ० ५१५ । नीम अपने कड़वापन के लिये प्रसिद्ध है; और लीमू खड़ा होता है, न कि कड़वा । एक प्रतिमें " लींबड्डु " पाठअन्तर है जो लिंब शब्द के परे स्वार्थे ड-प्रत्यय लगानेसे बना है।
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