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प्रो. ब्रांउनकी कालक-कथा
लेखक - डा० बनारसीदासजी जैन, एम. ए., पी-एच. डी.
सन् १९३३ में अमरीका के प्रो० ब्राउनने " दि स्टोरी ऑफ़ कालक "_ नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने कालकाचार्य संबन्धी ६ रचनाओंका रोमन लिपिमें मूलपाठ तथा कथाविषयक ३९ प्राचीन चित्र दिये हैं, और भूमिका में कालक - कथाके ऐतिहासिक महत्त्व तथा लघु चित्रकलाका विस्तृत विवेचन किया है । ब्राउनने अपने ग्रन्थके संपादन में कितना परिश्रम उठाया है, इसका अनुमान ग्रन्थ पढ़नेसे ही हो सकता है । प्रस्तावना में वे लिखते हैं-" इस ग्रन्थके तैयार करनेके लिये अधिक सामग्री तो मुझे जैन भंडारोंसे प्राप्त हुई । इस संबन्धमें मुझे अनेक मुनिराजोंके दर्शनका साभाग्य मिला और सबने मेरी पूरी सहायता की । अपना २ पुस्तक - संग्रह दिखलानेमें, मेरे साथ पाठ - वाचनमें, अर्थ लगाने में, शास्त्रीय उल्लेख बतलाने में तथा पाठोंकी नकल करने अथवा फोटो बनवाने में किसीने किंचित् संकोच नहीं किया । श्री सागरानन्दसूरि, श्री विजयवछम सूरि, श्री विजयनेमिरि, मुनि कान्तिविजय, मुनि हंसविजय, मुनि चतुरविजय और उनके शिष्य मुनि पुण्यविजयके नाम विशेष उल्लेखनीय हैं । यद्यपि मैं स्व० श्री विजयधर्मसूरिके पट्टधर श्री विजयइन्द्रसूरिके दर्शन नहीं कर सका, तथापि उनकी आज्ञा से मेरे लिये आगरेसे अनेक प्रतियां मंगवाई गईं और शिवपुरीकी संस्थामें काम करनेका मुझे पूरा अधिकार दिया गया । यहां मुनि विद्याविजय और मुनि जयन्तविजयसे मेरी भेंट हुईं । अहमदाबाद श्रावक श्रीयुत के० पी० मोदी तो अपना निजी काम छोड़ कर कई दिन तक मुझे साधु मुनिराजों के पास लेजाते और भंडार दिखलाते रहे । उन्होंने पाटण, खंभात आदिसे ग्रन्थ भी मंगवा कर दिये । इससे मुझे जैन साधु तथा श्रावकों के विद्या-प्रेम और शिष्टाचारका ही परिचय नहीं मिला, प्रत्युत मैं उनके उच्च आदर्श और श्रेष्ठ जीवनसे भी बहुत प्रभावान्वित हुआ। ऐसे ही पुरुषोंसे तो भारतवर्षका वास्तविक उत्कर्ष है । इनके अन्दर उपकार, उदारता और त्यागको भावना साथ २ विवेक और भक्ति ऐसे गुण हैं जिनके कारण संसार में ये सर्वोच्च कहे जाते हैं । "
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१ The story of Kalaka – Texts, history, legends and miniature paintings of the Svetambara Jain hagiographical work, the Kālakāchāryakathā (with 15 plates ). By W. Norman Brown. Washington, 1933. pp. vili+149; 15 plates. 132 + 10 ".
२ इन रचनाओंकी देवनागरी प्रतिलिपि तथा भूमिका-सार के लिये देखिये - मई सन् १९४४ " ओरियण्टल कालेज मेगज़ीन " लाहौर ( हिन्दी विभागं ) ।
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