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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir o jܞ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष . उपर्युक्त छओं उल्लेख प्राचीन तीर्थमालासंग्रहसे उद्धृत किये गये हैं। अब अन्य उल्लेख दिये जारहे हैं ७ क्षेमराजरचित पार्श्वअष्टोत्तरशतनामगर्भितस्तोत्रमें__ " श्रीकाशीरावणेषु क्षितिधरमुकुटे चित्रकूटे प्रसिद्धम्' । (हमारे संग्रहमें) ८ जसकीर्तिरचित पाचअष्टोत्तरनामस्तवनमें"अलवरइ नयर गोपाचलइ ढल्लिय रावणे पास वणारसी वंदीई इकमतइ ।" (हमारे संग्रहमें) .. ९ प्रगटप्रभावी पार्श्वनाथ नामक ग्रन्थके पृ. ८८, ११६ में " रावणपार्श्वनाथनुं देरासर हालमां अलवरमा छ, जेनो जीर्णोद्वार हमणां थाय छ । समुद्रनी मध्ये राक्षसद्वीपनी सुवर्णनी लंकाना अधिपति रावण आठमा प्रतिविष्णुनी राजधानी हती। एकदा रावण अने मंदोदरी विमानमां बेसीने क्यांय जतां हता, ते बीजे दिवसे अलवर नजीक आवतां एक ठेकाणे तेमणे विश्राम कर्यो । भोजननो अवसर थतां प्रतिमापूजननो नियम होवाथी प्रतिमा सांभयाँ, पण प्रतिमाजो साथे लीधेलां न हतां । जेथी मंदोदरीए वालुनी मूर्ति निपजावीने तेनी रावण तथा मंदोदरीए पूजा करी । ते प्रतिमाजी अलवरमा छ ।” __अलवरमें श्रीरावणप्रार्श्वनाथजीकी प्रतिमाको सं. १६४५ माध वदि १३ शनिवारको आगरेके शाह हीरानंदजीने नवीन चैत्यालया बनाके स्थापित की। खरतरगच्छके आधपक्षीय श्रीजिनचंदसूरीजी. वाचकरंगकलशादिने सपरिवार प्रतिष्ठा की। इस उल्लेखवाला शिलालेख इस प्रकार है ॥ ६० ॥ सिद्धि श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ स्वस्ति श्रीपार्श्वनाथोयं, रावणेति प्रसिद्धता । धरणिपद्मार्चितोदद्याद्भव्यानामिप्सितं फलम् ॥ १॥ बार्णवेर्दै रसोर्वी मिते विक्रमवत्सरे । माघकृष्णात्रयोदश्यां रविजे शुभवासरे ॥ २ ॥ श्रीमच्छीरावणाभिधपार्श्वनाथस्य भक्तितः । कृतैषा स्थापना नव्यं कारयित्वा सुमन्दिरम् ॥ ३ ॥ तद्यथा। ओसवालान्वये गोत्रे सोन्यारडक्कसंज्ञके । साधुः श्रीअंबसी जातो तानसी च तदात्मजः ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521608
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size14 MB
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