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रावणतीर्थ कहां है ?
लेखक: — श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा, बोकानेर.
" श्री जैन सत्य प्रकाश " के क्रमांक ११२ में प्रकाशित रौप्याक्षरी कल्पसूत्र की प्रशस्तिमें उल्लिखित रावणतोर्थ सम्बन्धमें मैंने गतांकमें, फिर कभी प्रकाश डालने का सूचित किया था, पर गतांकमें प्रकाशित श्री चीमनलाल लल्लुभाईका लेख देखकर उस विषयमें शीघ्र ही यथाज्ञात प्रकाश डालना आवश्यक प्रतीक हुआ, फलतः इस लघु लेख द्वारा, मुझे ज्ञात प्रमाणों द्वारा, इस विषय में प्रकाश डाला जा रहा है ।
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श्री चीमनलालभाईने रावणतीर्थको राणकपुर होनेकी कल्पना की है पर वह सर्वथा अयौक्तिक प्रतीत होती है। संवतके सम्बन्धमें भी उनके समन्वयकी कल्पना समिचीन नहीं है। : संवत के सम्बन्ध में तो गतांकमें मैं अपना मत प्रकाशित कर चुका हूं, और वह ठीक प्रतीत होता है । रावणतीर्थ सम्बन्धमें मेरा नम्र मत है कि यह उल्लेख अलवर के सुप्रसिद्ध रावण - पार्श्वनाथका ही सूचक है । यद्यपि प्रशस्तिश्लोक में केवल रावणशब्द ही है, फिर भी कई तीर्थमालाओ को देखते उनमें अलवर के रावण पार्श्वतीर्थके सिवाय अन्य कोई इस नामका तीर्थ प्रसिद्ध नहीं ज्ञात होता । अतः प्रशस्तिगत रावणतीर्थ यही तीर्थ है । तीर्थमालाओंके उल्लेख इस प्रकार हैं
१ रावण मनमां सांभर्यो, अलवरपुर हो बेठो प्रभु ठामे । सं. २४ । - ( कल्याणसागररचित पार्श्वनाथ चैत्यपरिपाटी ) पृ. ७२ । २ हिवे मेवातदेश विख्याता, अलवरगढ कहेवायजी । रावणपार्श्व जुहारो रंगे, सेवे सुरनर पायजी । हि. १ ।
- ( सौभाग्यविजयजीरचित तीर्थमाला ) पृ. ९८ ।
३ नरवर अलवर रणथंभरि रावणपासजी रक्षा करि ।
-- ( शीलविजयजीरचित तीर्थमाला ) पृ. ११० । ४ श्रीरावणप्रभुजी संकटभंजन नामई, करहेडउ कामितपूरण मांडणगामह । — ( मेघविजयजीरचित प्रार्श्वनाथनाममाला ) पृ. १५१ । १५ वरकाणु सपराणु राणु विश्वनुं रे, रावण गौडी पास |
- ( रत्नकुशलरचित पार्श्वनाथसंख्यास्तवन ) पृ. १६९
६ अलवर रावण राजियों, जीराओलि हो तुं जागे देव ।
- ( शांतिकुशलरचित गौडीपार्श्वस्तवन ) पृ. १९९ ।
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