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४८] પૂજ્યતાક વિચાર
[४१५ विचार करता रहा हूं और ऐसी पुस्तकें देख देख कर मुझे अत्यन्त दुःख होता है । मैं चाहता तो यह था कि किसी विद्वान द्वारा यह प्रश्न उठाया जाता जिससे जैन समाज व विद्वानोंका ध्यान इस ओर शीघ्र आकृष्ट हो परन्तु सबको इस ओर चुप देखकर विवश होकर यह कार्य मुझे करना पड़ रहा है । आशा है कि विद्वद्वर्ग इस और शीघ्र ध्यान देकर ऐसी इतिहासकी पुस्तकोंका पूर्ण विरोध करके उन्हें पाठयक्रमसे हटवानेका या उनमें समुचित सुधार करवाने का प्रयत्न करेंगे और साथ ही साथ ऐसे लेखकोंसे अपनी पुस्तकोंमें दुरस्ती करवानेकी भी व्यवस्था कराई जावेगी, जिससे जैन धर्म के सम्बन्धका यह मिथ्या साहित्य भविष्यके लिये बन्द होजावे । यदि इस समय इसका विरोध नहीं किया गया और जैन समाज निद्रा लेती रही तो भविष्यमें इतिहासकी दृष्टिसे जैनधर्म व भगवान महावीर जैसी असाधारण विभूतिका संसारके इतिहासमें कोई महत्त्व नहीं रहेगा।
पूज्यताका विचार लेखक : पूज्य मुनिमहाराज श्रीविक्रमविजयजी
[क्रमांक ९९ से क्रमशः ] ता. १५-४-४२के 'स्थानकवासी जैन' पत्रमें 'बड़ों और गुणियोंको आदर देनेका नियम सर्वसाधारण के लिये समान है । जिस तरह राजा या सम्राट के सभामें पदार्पण करने पर सभासदोंको खडे होकर आदर देना, गुरु अथवा धर्माचार्य के आगमन पर सन्मुख जाकर वंदन नमस्कार करना आदि।' डोसीजी का यह लेख भावोंकी भिन्नता को ही स्पष्ट करता है, कारण कि जो पुरुष जिसको बडा या गुणी समझता है, वो ही उसका आदर करता है अन्य नहीं, यह सर्वत्र सुप्रसिद्ध है। अन्य राजा, अन्य सम्राट, अन्य गुरु या अन्य धर्माचायके आगमन पर अन्य जनता आदर नहीं करती तो केवल सर्वसाधारण के लिये आदर देनेका नियम समान है यह सिद्ध नहीं हो सकता है । क्या मूर्तिपूजक धर्माचार्यके आने पर समग्र जैन जनता आदर करती है ? नहीं। ऐसे ही स्थानकवासी धर्माचार्यके आने पर जैन जनता मात्र आदर नहीं करती है । इसका क्या कारण है ? क्या भावके सिवा कोई दूसरा कारण हो सकता है ? कदापि नहीं। तब तुम्हारे नियमकी सर्वजनसमानता कैसे टीक सकती है? आगे चलकर लिखा है कि-'किन्तु भविष्यमें होनेवाले महापुरुषको वर्तमानमें आदर देनेका वैसा नियम नहीं है' इस वाक्यसे तो 'नियम नहीं किन्तु हो सकता हैं' ऐसा तुमने स्वीकार लिया क्यों कि तुमने आदर नहीं देनेका नियम है, ऐसा नहीं लिखा है, और तुम्हारे उपर लिखनेके मुताबिक भूतमें हुए महापुरुषोंको वर्तमानमें भी आदर देनेका नियम नहीं है यह बात भी मंजूर करनी होगी । तब भूत पुरुषका वर्तमानमें नामस्मरण स्तुत्यादि भी निरर्थक हो
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