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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક ૭ ] “અનેકાન્તના સમ્પાદકનું વેતામ્બર પ્રત્યેનું માનસ [ ૩૩૭. એટલે શ્વેતામ્બર આગેવાનોનાં નામે કે “તિલેયપન્નત્તિ”ના નામે वीरशासन-जयन्ती-उत्सव संधी 'अनेकान्त ना सम्पा६४ श्री. grelsशा२७ મુખ્તાર તરફથી કરવામાં આવતે પ્રચાર કેટલે નિરાધાર છે તે આ ઉપરથી બરાબર સમજી શકાય છે. શ્રીમાન સિંધીજીના આ પત્રની જેમ જ બીજા શ્વેતામ્બર વિદ્વાને કે આગેવાનોના પત્ર કે ખુલાસા સમયે પ્રગટ કરવાની આશા સાથે અમે આ પત્ર વાચકે સમક્ષ રજૂ કરીએ છીએ. -तत्री श्रीमान् बाबु बहादुरसिंहजी सिंघीनो पत्र सिंघी पार्क, ४८, गरियाहाट रोड, पो. बालीगञ्ज, कलकत्ता श्रीयुत अधिष्ठाता वीरसेवामंदिर की सेवामें निवेदन है कि अनेकान्त के छठे वर्ष का जो विज्ञप्ति अंक अभी मेरे पास आया है उसमें वीरशासन जयन्तो का ढाई सहस्राब्दी महोत्सव मनवाने की योजना से सम्बन्ध रखने वाला एक प्रस्ताव छपा है। उसमें वीरशासन की जयन्ती के महोत्सव को अखिल भारतवर्षीय जैन महोत्सव का रूप देने की बात कही गई है और उसीमें अस्थायी नियोजक समिति के सभ्यों को नामावलि में श्वेताम्बर समाज के अन्यतम प्रतिनिधि रूप से मेरा भी नाम बिना ही पूछे दाखिल किया है। इस कारण उक्त प्रस्ताव और वीरशासन जयन्ती के महोत्सव के बारे में श्वेताम्बर समाज के एक प्रतिनिधि की हैसियत से मुझे कुछ लिखना पड रहा है। यद्यपि मैं अपना विचार श्वेताम्बर समाज के प्रतिनिधि के रूप से लिख रहा हूँ जिसमें किसी भी श्वेताम्बर व्यक्ति को आपत्ति हो नहीं सकती। फिर भी मेरा यह विचार स्थानकवासी समाज को भी मान्य होगा, क्योंकि मैं जो कुछ लिख रहा हूँ उसमें श्वेताम्बर, स्थानकवासी तथा तेरापंथी सब एकमत हैं। जब वीरशासन जयन्ती के महोत्सव को अखिल भारतबर्षीय जैन महोत्सव बनाना हाँ तब यह जरूरी हो जाता है कि सभी जैन फिरकों के प्रमाणभूत और उत्तरदायी व्यक्तियों से पहले परामर्श किया जाय, जो वीरसेवामंदिर ने किया नहीं है। प्रस्ताव में कहा गया है कि आगामी महोत्सव राजगृही के विपुलाचल पर और श्रावण कृष्ण प्रतिपद् को मनवाया जाय । जहाँ और जिस दिन भगवान् महावीर ने प्रथम उपदेश दिया था। मैं समझता हूँ प्रस्तावका यह कथन विशेष रूप से आपत्ति योग्य है । क्या श्वेताम्बर और क्या स्थानकवासी कोई आज तक यह न जानता है और न मानता है कि भगवान् महावीर ने उक्त स्थान में उक्त तिथि को प्रथम उपदेश दिया था। इसके विरुद्ध सभी श्वेताम्बर और सभी स्थानकवासी पुराने इतिहास और परम्परा के आधार पर यह मानते हैं कि भगवान महावीरने ऋजुवालिका के तट पर प्रथम उपदेश किया और सो भी वैशाख शुल्क दसमी को। For Private And Personal Use Only
SR No.521598
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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