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विक्रमादित्य विषयक जैन साहित्यकी सूची
(१) संस्कृत (मौलिक) ग्रन्थ
विभ-विशेषis]
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रचनासमय
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વિક્રમાદિત્ય સઍધી જૈન સાહિત્ય
ग्रन्थनाम
रचयिता
प्राप्ति एवं प्रकाशनस्थान १ सं. १२९०-९४ पंचदंडात्मक विक्रमचरित्र । अज्ञात
हीरालाल हंसराज जामनगर
(उ. जै. सा. सं. इ.) २ १३ वींया १५ वीं शताब्दो सिंहासनद्वात्रिंशिका
क्षमंकर
| प्र. उ. लाहौरके सूचिपन में ३ सं. १४७१ के लगभग विक्रमचरित्र ११
कासहदगच्छीय उ. देवमूर्ति | सं. १४९६ लिखित प्रति
लोंबडी भं. ४ सं. १४९० माघ शुदि १४ विक्रमचरित्र (पंचदंड) ग्रं. २५००/ साधुपूर्णिमा रामचंद्रसूरि दानसागर भंडार बीकानेर . रवि खंभात ५ सं. १४९० माघ शुदि १४ विक्रमचरित्र (सिंहासन द्वात्रिं
उ. जै. सा. सं. इ. रवि दर्भिकाग्राम
शिका)१२ १० कई विद्वान इसे १३ वीं शताब्दीका बतलाते हैं । घटपुरुषचरित्रके कर्ता क्षेमंकर १५ वीं शताब्दीमें हुए हैं । इस सिंहासनद्वात्रिंशिकामें इसका आधार महाराष्ट्री भाषाका उक्त कथानक बतलाया है पर वह अभी अज्ञात है।
" श्रीविक्रमादित्यनरेश्वरस्थ चरित्रमेतत् कविभिनिबद्धः । पुरा महाराष्ट्रवरिष्टभाषामयं महाश्चर्यकर नराणाम
क्षेमकरण मुनिना वरं गद्यपद्यबंधन युक्तिकृतसंस्कृतबंधुरेण । विश्वोपकारविलसद्गुणकीर्तिनायं चक्रे चिरामरपंडितहर्षहेतुः ।। बीकानेर स्टेट लायब्रेरीमें २, बृहदुभंडारमें २, हमारे संग्रहमें भी इसकी १ अपूर्ण प्रति है।
११ इसके १४ सगाके नाम इस प्रकार हैं-विक्रमोत्पत्ति, राज्यप्राप्ति, सुवर्णपुरुषलाभ, पंचदंडछत्रप्राप्ति, द्वादशावर्तवन्दनकफलसूचककौतुक नयवीक्षि. देवपूजाफलसूची, राज्यागमन, विक्रमप्रतिबोध, जिनधर्मप्रभावसूचक हंसावलीविवाह, विनयप्रभाव, नमस्कारप्रभाव, सत्त्वाधिककथाकोष, दानधर्मप्रभाव स्वर्गारोहण सिंहासनद्वात्रिंशिका । (जै. सा. सं. इ. पृ. ४६८) इस ग्रंथकी एल और प्रति सं. १४८२ लिखित बम्बई रो. ए. सो. के नं. १७७३ में है।
१२ इसका गुजराती अनुवाद (स्व. मणिलाल नभुभाईका) बडोदेके केलवणी खातासे सं. १९५१ में प्रकाशित हुआ है।
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