________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
વિક્રમ-વિશેષાંક ] વિક્રમાદિત્ય સબધિ જૈન સાહિત્ય [१८१
विक्रमादित्यको कथाओंका विशाल साहित्य विक्रमकी लोकप्रियताका ज्वलंत उदाहरण उनके सम्बन्धी विशाल साहित्य है । यह साहित्य इतना विशाल है कि किसीके राज्यकी कथाएं इतने विपुल प्रमाणमें नहीं पाई जाती । वेतालपचीसो, सिंहासनबत्तीसी आदि कथाओंके ग्रन्थ प्रायः भारतीय सभी प्रमुख भाषाओंमें पाये जाते हैं । इन कथानकामेंसे कई कथाओंका आधार बहुत प्राचीन साहित्य है। उदाहरणार्थ वेतालपचीसीकी कथाएं ११ वीं शताब्दीके प्रसिद्ध कथासंग्रह-१ बुधस्वामीविरचित बृहत्कथाश्लोकसंग्रह, २ क्षेमेन्द्ररचित कथामंजरी (ई. १०५०), ३ सोमदेवरचित कथासरित्सागर (ई. १०७०)-में पाई जातो है । इन तीनोंका आधार गुणाढ्यरचित बृहत्कथा ग्रंथ है, जो पैशाची भाषामें था, पर अभी लुप्त है। इसका समय ई. को ५ वीं शताब्दीके पूर्वका ही अनुमान किया जाता है। इसी प्रकार पंचदंडकी कथाओंका जैन चरित्र सं. १२९० का रचित है। क्षमं करने, सिंहासनबत्तासाको महाराष्ट्री भाषाम रचित उक्त कथाको देखकर, अपना ग्रन्थ बनानेका उल्लेख किया है। खेद है कि यह महाराष्ट्रो भाषाको कथा भी अब उपलब्ध नहीं है एवं उसका समय अज्ञात है। जैन कवि राजवल्लभने सिद्धसेनरचित सिंहासनद्वात्रिंशिकाका उल्लेख किया है, पर वह भी अब प्राप्त नहीं है। विक्रम सम्बन्धो कथाओं एव साहित्यकी प्रचुरता होने पर भी जब हमारे भारतीय विद्वानोंने उनकी खोज, तुलनात्मक अध्ययन, आलोचना व प्रकाशनका और उदासीनता दिसाई है तब पाश्चात्य विद्वानोंने इसकी अच्छी कदर की है। उन्होंने कई कथाओंको बड़े सुन्दर ढंगसे सम्पादित कर प्रकाशित किया है। उनके अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्वीडोश भाषाओं में आलोचनाके साथ प्रकाशित किये हैं।
विक्रमसंबंधी समग्र साहित्य और उसमें जैन साहित्यका स्थान जैसा कि उपर लिखा जा चुका है विक्रमसम्बंधी साहित्य बहुत विशाल है । संस्कृतमें उपर्युक्त ३ कथाग्रन्थोंके अतिरिक्त शिवदासकृत वेतालपंचविंशति (प्रति-स्टेट लायब्रेरी बीकानेर) एवं यही कथा जंभलदत्त (बंगोय विद्वान् जीवानंद प्रकाशित-कलकत्ता) रचित प्रकाशित है । केटलोग्स केटलोग्राममें वल्लभरचित उक्त नामके ग्रन्थका एवं सिंहासनद्वात्रिंशिकाका वररुचि, कालिदास, रामचंद्र (संभवतः रामचंद्रसूरि ही हैं ) और शिवके रचित होने का उल्लेख है। जैन ग्रंथावली में विद्यापति भट्टरवित विक्रमचरित्रका उल्लेख पाया जाता है । बीकानेर स्टेटकी अनुपसंस्कृत लायवेरोमें मलेखेडर भट्टरचित विक्रमाचरित्रको प्रति है, जिसमें सिंहासनबत्तीसीको कथाएं हैं । संस्कृत साहित्यके इतिहासके पृ. ३९७ में माद्रपुरसे प्रकाशित विक्रमार्कचरित्र का उल्लेख किया है वह विशेष संभवतः यही होगा । पैजरके सम्पादित कथासरित्सागरके अंग्रेजी अनुवादके परिशिष्टमें एतद्विषयक प्रकाशित साहित्यकी सूची दी है । उसके अनुवाद तामिल एवं महाराष्ट्री भाषाओं में भी है जो केनकेड और बेविंगरनने किये हैं। गुजराती
७ हावर्ड ओरायन्टल सिरिझसे सिंहासनद्वात्रिंशिकाके ४ रूपान्तर बड़े उत्तम ढंगसे सानुवाद प्रकाशित हुए हैं, एवं पंचदण्डछत्रप्रबंध भी जर्मनासे प्रकाशित हो चुका है।
For Private And Personal Use Only