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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir વિક્રમ–વિશેષાંક ] સંવપ્રવર્તક વિક્રમાદિત્ય ઓર જૈનધર્મ [ ૧૭૯ है सम्भवतः वह कल्पना सुसंगत हो सकती है। उसका सारांश यह है कि: "विक्रमादित्य से पहिले और बादमें होनेवाले छोटे छोटे राजाओं के सिक्के तो मिलते हैं, परन्तु जिसका गन्य.६० वर्ष तक अखण्ड रूपसे चाला हो उसके सिके चले ही नहीं इसकी सम्भावना कम है अथवा सम्भव है कि अभी तक सिके पूरी ताह पहिचाने ही न गये हो । क्योंकि सिक्का चलाने वाले हिन्दु राजाओं से किसीने अपना नाम सा चेहरा सिके पर खुदवाया हो ऐसा प्रमाण नहीं मिलता, प्रायः अपने धर्म अथवा वंश का कोई चिह्न अंकित करने की प्रथा थी। मेरी एक कल्पना है कि उज्जैनके कुछ सिके ऐसे भी हैं जिन पर वेधशाला के चिह्नके अतिरिक्त ५ चन्द्रबिन्दु अथवा 卐 खस्तिकका चिट्स भी है, सम्भव है कि ये सिक्के विक्रमादित्य के हो और यदि ऐसा प्रमाणित हो जाये तो उससे भी विक्रमादित्यका जैनधर्मानुयायी होना प्रमाणित होता है, क्योंकि ५ चन्द्रबिन्दु को जैनधर्ममें सिद्धशिला और एह खस्तिकको चार गतिका प्रतीक धार्मिक चिह्न माना हो जाता है । '' विक्रमादित्यकी आयुष्य एवं राज्यकालके सम्बन्धमें भी ऐतिहासिकोका निश्चित मत नहीं । राज्यकाल कोई ६० वर्ष और कोई इससे भी अधिक मानते हैं । एवं आयुष्य के सम्बन्धमें भी यह अनुमान है कि शकोंको पराजित करते समय उसकी आयु कमसे कम २५-३० वर्ष होगी और ६० वर्ष या इससे अधिक समय राज्यकालका है, इससे अनुमानतः ९०-९५ वर्षसे तो किसी भी दशामें कम नहीं होगी। विक्रमादित्यकी कितनी रानियां एवं पुत्र थे यह भी इतिहासके प्रकाशमें नहीं आया। कई ऐतिहासिकोंमें विक्रमादित्य के बाद उसके पुत्र माधवसेन, जिसने आरबी समुद्रमें एक टापूके राजाकी कुमारी सुलोचनासे विवाह किया था, के राज्यपाट संभालनेका उल्लेख किया है। श्रीमेस्तुंगाचार्यजीकी स्थविरावलि अथवा विचारश्रेणिके अवतरणानुसार विक्रमके बाद उसका पुत्र विक्रमचरित्र उर्फे धर्मादित्य राज्यसिंहासन पर बैठा । इसमें सन्देह नहीं-विक्रमादित्य राजा महाप्रतापी, ओजखी, प्रतिभासम्पन्न, प्रभावशाली, न्यायप्रिय, प्रजावत्सल, गुगपाही, धर्मात्मा, दयालु एवं दानशील थे और जैनधर्म के साथ उनका घनिष्ठ सम्बन्ध था। For Private And Personal Use Only
SR No.521597
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size120 MB
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