________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
विभ-विशेषां४ ]
સંવત્પ્રવતક વિક્રમાદિત્ય ઔર જૈનધમ
[ १७३ गर्दभिल्ल सम्बन्ध में रोमके महाक इतिहासकार प्लीनीने ऐसा उल्लेख किया है किई. स. पूर्व ६० में भारतवर्ष के व्यापारियोंके कुछ सुन्दर जहाज़ आफ्रीका रवाना हुए, उन्हें समुद्रयात्रा करते समय हिन्द महासागर में एक बड़े तूफानका सामना करना पड़ा, जिससे बहुतसे जहाज समुद्रतल में बैठ गये । इन व्यापारियों में उत्तर भारतका कर्तुकगल्ल (गर्दभिल्ल) नामक - राजा भी था । सद्भाग्यसे वह राजा व अन्य कुछ व्यापारी तूफान में से बच गये, परन्तु तूफानी हवा से वे दूसरे मार्गकी ओर चले गये और दस महीने के बाद जर्मनी के तट पर जा पहुंचे । जर्मनी में कुछ दिन निर्गमन कर वे फ्रान्स गये। वहांपर उस समय मीटेलस नामक रोमन सूबा राज्य चला रहा था उसने कर्तुकगल्ल (गर्द भिल्ल) को एक सिफारशी पत्र लिख दिया जिसे लेकर वे लोग रोम पहुंचे जहां टेटसने उनका स्वागत किया । ४
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अपने देश से निकाल दिये जानेपर गर्दभिल्लके पुत्रोंने दक्षिणमें जाकर उस समयके वहां के राजा अरिष्टकका आश्रय लिया । वह राजा महापराक्रमी था, कुछ वर्षो की तैय्यारीके बाद अवसर पाकर गईभिल्ल कुमाराने अरिष्टकर्णकी पूर्ण सहायता से शकोंके आधीन प्रदेशों पर हमला करनेके लिये प्रस्थार किया । नर्मदानदी के तटप्रदेशमें कारूर नामक स्थान पर भीषण युद्ध हुआ । इस भयङ्कर युद्ध में गर्दभिल्लकुमार विक्रमादित्यने अनुपम पराक्रम दिखाया और शक सामंतों पर विजय प्राप्त कर उन्हें उस देशसे बाहर खदेड़ दिया । इस प्रकार शकों को परास्त करने से विक्रमादित्यको शकारि गर्दभिल्ल अथवा शकारि विक्रमादित्य कहने लगे ।
गर्द मिल्लके कुल कितने पुत्र थे यह कहीं स्पष्ट न होनेपर भी विक्रमादित्य से एक बड़े भाई शंकु और एक छोटे भाई भर्तृहरिका उल्लेख मिलता है । क्यों कि शंकु गर्दभिल्लका सबसे बड़ा पुत्र था, इसलिये शकोंको परास्त करनेके बाद उसे राज्य सिंहासन पर बिठाया गया, परन्तु छ मासमें उसके शासनका अन्त हो गया ।
कुछ ऐतिहासिकोंको शंकुकी स्वाभाविक मृत्युपर संदेह है, वे विक्रमादित्य पर उसकी हत्या करनेका आरोप करते हैं, परन्तु एक न्यायप्रिय, प्रजा - वत्सल राजासे, जिसका संवत् आजतक गौरव सहित चल रहा है, ऐसी आशा नहीं की जा सकती । भारतीय सभ्यता में ऐसे कृत्यको गौरवास्पद नहीं माना जाता । यदि ऐसा दुष्कृत्य विक्रमादित्यसे हुआ होता तो उसका नाम लेना भी कोई उचित न समझता ।
1
बडे भाई शंकुकी मृत्यु के बाद राज्यकी बागडोर विक्रमादित्यने संभाल ली । शकों से ★ हुई हुई प्रजा विक्रमादित्य के राजा होते ही अत्यन्त प्रसन्न हुई । विक्रममें पराक्रम था, दिव्यकी तरह तेज था, शासनकी शक्ति थी और था राजकर्मचारियों व प्रजापर पूर्ण प्रभाव ।
'१४ देखो ' जीवदया ' अक्टूबर १९४३ का अक
·
For Private And Personal Use Only