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विभ–विशेषां8 ]
વિક્રમાદિત્યકા સંવ-પ્રવર્તન
[१६च
अमानुषिक घटनायें प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं । जिन उल्लेखोंमें इतिहासका आभास है, वे भी परस्पर और पूर्वापरविरोधी हैं । इस लिये उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता । अल्बेरूनीने लिखा है कि शकसंवत्को, जो विक्रमसंवत्से १३५ बरस पीछे चला, राजा विक्रमादित्यने चलाया था । यह विक्रमादित्य उज्जयिनोके विक्रमादित्य और विक्रमसंवत् के प्रवर्तक से भिन्न था।
फिर राजतरङ्गिणीमें, जो इतिहासकी दृष्टिसे काफी विश्वनीय ग्रन्थ है, दों विक्रमादिव्यों का उल्लेख पायाजाता है, और विक्रमकी चौथी पांचवी शताब्दी के बाद तो विक्रमादित्य एक बिरुद बन गया था जिसे कई राजाओंने धारग किया । इसी लिये विक्रम - साहित्य में परस्पर विरोध मिलता है । लेखकोंने एक विक्रमादित्य की जीवन- घटनाओंको दूसरे के साथ मिला दिया ।
ऐसी दशा में विक्रमादित्य और विक्रमसंवत् के इस संदेहको इस बात से और भी पुष्टि मिली कि किसी ग्रन्थ में विक्रमादित्यका उल्लेख नहीं मिलता, और न ही कोई प्राचीन मुद्रा या लेख
ऐसा प्राप्त हुआ है जिसमें विक्रमादित्यका नाम या वृत्तान्त पाश्चात्य विद्वानोंने दो हजार बरस पूर्व किसी विक्रमादित्य के कर दिया ।
वर्णित हो ।' इन कारणोंसे अस्तित्वको मानने से इनकार
इस प्रकार दो हजार बरस पहले विक्रमादित्य के अस्तित्वको अस्वीकार करने पर प्रश्न यह उठा कि वर्तमान विक्रमसंवत कबसे चला और इसका यह नाम क्यों पड़ा ।
संबन्ध में संदेह होना प्रस्तुत विक्रमादित्य के
स्वाभाविक था । समय के रचे हुए
इसका उत्तर यह दिया गया कि सं. ६०० के लगभग एक राजाने जिसका नाम या विरुद विक्रमादित्य था, हूणों को परास्त किया और इस विजयकी स्मृति में उसने नया संवत् चलाया और इसे प्राचीन रूप देनेके लिये संवत्का प्रारम्भ ६०० वर्ष पीछे हटा दिया।
३. अल्बेरुनी अवदेशका रहनेवाला था । जन्म सं. १०३०, मृत्यु सं. ११०५ । इसका बनाया तहकीकुल हिंद " ग्रन्थ बड़ा प्रसिद्ध है ।
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४. सर्ग २, श्लोक ५, ६ । सर्ग ३ श्लो. १२५ ।
५. बहुतसे राजाओंके एक ही बिरुदको धारण करनेको प्रथा योरपमें भी पाई जाती है । जैसे- रोमके बादशाह " जूलियस सीज़र" (वि. पू. ४३ से सं. १३ तक ) के बाद कई बादशाह सीज़र कहलाये। इसी सोज़रका रूप जर्मनी में " कैज़र " आर रूसमें जार हो गया। जारका लिखित रूप Czar है जो वास्तव में " सीज़ार " बोला जाना चाहिये था ।
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६. किसी व्यक्तिके अस्तित्वको अस्वीकार करनेमें उसके नामके मुद्रा या लेख न मिलना कोई प्रबल प्रमाण नहीं ।