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श्री जैन सत्य A [भा १००-१-२ और पश्चिमी तट तथा काश्मीर आदि सब प्रदेशों पर विजय हो गई है । म्लेच्छ भी परास्त हो चुके हैं । अब विक्रमशक्ति पराजित राजाओंको साथ लेकर इधर ही आ रहा है । यह सुन कर विक्रमादित्य बहुत प्रसन्न हुआ और अनङ्ग देवको कहा कि अपनी यात्राका वृत्तान्त सुनाओ । इसमें तुमने क्या २ अद्भुत वस्तुएं देखीं और क्या २ आश्चर्यजनक घटनाएं हुई।
___ अब यहांसे विक्रम संबन्धी कथाएं प्रारम्भ हो जाती हैं, जिनकी नामावली और घटनावलीमें विक्रमचरित, सिंहासनद्वात्रिंशिका, विक्रमप्रबन्धादिसे काफी अन्तर है। विक्रमादित्यका यह सारा वृत्तान्त कल्पित प्रतीत होता है । इसमें ऐतिहासिक तथ्य लेशमात्र भी दिखाई नहीं देता । दे भी कैसे, जब कि नरवाहनदत्त जिसको कण्व ऋषिने यह कथा सुनाई, उज्जयिनीपति विक्रमादित्यसे कई सौ बरस पहले हो चुका था । कथासरित्सागरकी मूल कथासे विक्रमादित्यका आन्तर संबन्ध नहीं ।
हमारा विक्रम
[ लेखक : श्रीयुत वासुदेवशरण अग्रवाल, एम. ए. पीएच. डी.] नये उत्थानके युगमें मनुष्य विक्रम करता है। राष्ट्र भी अपने नव--जागरणमें नवीन विक्रमका आश्रय लेता है । विक्रम हो जीनका लक्षण है। पाद-विक्षेपकी संज्ञा विक्रम है। गतिमत्ता या हरकत विक्रमका लक्षण है । यही विक्रम सृष्टिकी सत्ता और वृद्धि के लिए जब आवश्यक है. तो मनुष्य समाजका तो कहना ही क्या है ? उसको अपने भीतर और बाहर स्वस्थ रहनेके लिए विक्रमकी परम आवश्यकता है। यदि मनुष्य निश्चेष्ट बनने लगता है, तो वहींसे उसमें जीवनका नया प्रवाह मंद पड़ जाता है। बिना नवीन धाराके पुराना जल अपने जीवनांशको खोकर सड़ने लगता है । 'सड़ना' इस धातुका संस्कृतमें मूल उस धातुसे है जिसका अर्थ है 'पड़े रहना' 'पड़ जाना' । जो जीवनमें टिक कर बैठ गया, जिसने कर्मके क्षेत्रमें हलचलसे अपने आपको पृथक् समझ कर संकोचको वृत्ति धारण की, वही मानों सड़ गया। परंतु व्यक्तिमें और राष्ट्रमें जो 'चरैवेति, चरैवेति - चलते रहो. चलते रहो' की निरंतर गॅज है, वह जीवनको कायम रखती है। इस देशका इतिहास युगोंके पर्दोहे यही संदेश देता है। जब राष्ट्रमें, जनतामें, 'चलते रहो' की विक्रमशील भावना ऊपर उठी, तभी देश आगे बढ़ा, और फला-फूला। वे ही युग विक्रमके युग थे। उस समय कपिशा और वंक्षु नदसे लेकर सुदूर पूर्वमें यवद्वीप और मलय तक भारतीय संस्कृतिका संदेश विस्तारको प्राप्त हुआ। सिंहलमें आर्यधर्म और आर्य-नीतिका जयघोष हुआ। तिब्बत और चीनने आर्य-साहित्य और धर्मको श्रद्धांजलि भेंट की । भारतके मध्य देशसे विक्रमकी तरंगें
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