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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालकाचार्य और विक्रम लेखकः-श्रीयुत हजारीमलजी बाँठिया, बीकानेर कालकाचार्य अथवा आर्य कालक जैन समाजमें एक सुप्रसिद्ध आचार्य होगये हैं। श्वे. जैन समाजमें हमें चार 'कालक' नामके आचार्योका पता लगता है-(१) श्यामार्य नामसे प्रसिद्ध पहले कालकाचार्य जिनका युगप्रधान-स्थविरावलीकी गणनाके अनुसार वीरनिर्वाणसंवत् २८० में जन्म, ३०० में दीक्षा, ३३५ में युगप्रधानपद (सूरि-पद) और ३७६ (ई. पू. १५१) में स्वर्गवास हुआ था; (२) गर्दभिल्लराजासे सरस्वती साध्वीको छुड़ानेवाले दूसरे कालक, जिनका अस्तित्वकाल नि. सं. ४५३ (ई.पू.७४)के आसपास है; (३) इन्द्रसे प्रशंसित निगोदव्याख्याता तीसरे कालकाचार्य, जिनका अस्तित्व नि. सं. ७२० के आसपास है और (४) पर्युषणा-पर्वको पंचमीसे हटाकर चतुर्थीमें करनेवाले चौथे कालक.१ जिनका समय वीर-निर्वाण-संवत् ९९३ है।' द्वितीय कालक ही, विक्रमसंवत्सरके प्रवर्तक विक्रमसे संम्बन्ध रखते हैं अतः हम उन्हीके बारेमें इस लेखमें विचार-विमर्श करेगें । विक्रमसंवत्के प्रवर्तकके सम्बन्धमें पहले विद्वानोंकी राय थी कि वह ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं हैं, किन्तु आजकल उसे सभी विद्वान एक मतसे स्वीकार करने लगे हैं कि ई. पू. ५७ में विक्रमादित्य बिरुद धारण करनेवाला एक राजा हुआ था, जिसने शकोंका उन्मूलन किया और अपनी विजयकी खुशीमें विक्रमसंवत् चलाया। यही बात कालकाचार्यकथा एवं प्रचलित जैन कालगणनाके अनुसार सिद्ध होती है। इससे यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि ई. पू. ५७ में भारतमें विक्रमादित्य नामका एक हिंदू राजा अवश्य हुआ था। कालकाचार्यकी यशोगाथा विभिन्न लेखकोने प्राकृत, संस्कृत आदिमें 'कालकाचार्यकथा' नामसे की है। इसी कथा द्वारा हम कालकके घटनाचक्रका ज्ञान कर सकते हैं । मुनि कल्याणविजयजीने अपने 'आर्य कालक' लेखमें कालकाचार्य कथाकी प्रमुख घटनाओंको सात घटनाओंमें इस प्रकार विभक्त किया है। (१) गर्दभिल्ल राजाको पदभ्रष्ट करके सरस्वती साध्वीको छुड़ाना नि. सं. ४५३ (ई. पू. ७४)में, (२) चतुर्थी के दिन पर्युषणा-पर्व करना नि. सं. ४५७ और ४६५ (ई. पू. ७०-६२)के बीचमें, (३) अविनीत शिष्योंको छोड़कर १ कल्यसूत्रका संघ समक्ष वाचन करनेका प्रारंभ इन-चौथे कालकाचार्यने किया ऐसा भी उल्लेख मिलता है। २ मुनि कल्याणविजयजीके आर्य कालक लेखसे द्विवेदी अभिनंदन प्रन्य पृ. ९५] । For Private And Personal Use Only
SR No.521597
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size120 MB
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