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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विभ-विशेष વૈકમિય ઘટના [१६५ और उसी बख्त अपनी परोपकारशीलता बतला दी। एक लाख रुपया खजानेसे मंगवा कर उसको दे दिया और मकान ले लिया। उस दिन रातको राजा उसी मकानमें सोया । पोछली रातको 'पडता हूं पडता हूं' ऐसी आवाज आई। राजाने जवाब दिया कि अभी ही पडो, देर मत करो। राजाकी इस सत्त्ववृत्ति पर देव प्रसन्न हुआ और एक स्वर्ण पुरुष उपरसे गिराया, उसे राजाने स्वाधीन किया, जिस स्वर्णपुरुपके किसी भी अङ्गको काटे तो तुरंत ही वह नया बन जावे । इस तरहसे स्वर्णपुरुषकी सिद्धि संवत् चलानेमें तथा कोटि कोटिके दान देनेमें पूर्ण मददगार बनी। यह बात श्री मेरुतुंगाचार्य म.के बनाये हुओ "प्रबन्धचिंतामणि" परसे लिखी गई । प्रातःस्मरणीय श्री मुनिसुन्दरसूरीश्वरजी म.के शिष्य श्री शुभशीलगणि म. एक योगिके कारस्थानसे स्वर्णसिद्धि हुई बतलाते हैं । संभव है दो स्वर्णपुरुष सिद्ध हुए हों । ऐसे पुण्यशालियोंके लिये कोई आश्चर्यकारी घटना नहीं । एक समयका जिकर है कि एक विद्वान् ब्राह्मणको दैवी प्रसंगमें समुद्राधिप वरुणको बुलानेके लिए भेजा । वह समुद्र किनारे पर जाकर अधिपतिकी सुन्दर छटादार काव्यमें स्तुति करता है, और वरुणदेव हाज़र होता है । ब्राह्मणने कहा-महाराजा विक्रम अमुक प्रसंग पर आपको याद करते हैं। देवने कहा-तुम्हारा राजा परम दयालु, बड़ा उदार, विद्वत्प्रेमी है, इस लिये उसको चार रत्न भेट करता हूं। और उसे कह देना कि-मैं आ नहीं सकता । और ये चार रत्नोंके भिन्न भिन्न ये गुण हैं, एक एक रत्नका पृथक् २ निशानीपूर्वक परिचय कराया। एक रन चाहे ऐसी सुन्दरसे सुन्दर रसोई देता है, दूसरा इच्छित आभूषण अर्पण करता है. तीसरा सैन्यदायक है और चौथा चाहे ऐसा खेतीका पाक दता है। रत्न लेकर ब्राह्मण विक्रमके पास आया और वृतान्त कह कर रत्न भेट किये । राजाने कहा इसमेंसे एक तू उठा ले, तब वह बोला कि मैं अपने कुटुंबकी सम्मतिसे इनमेंसे एक ले सकता हूं। नृपतिने कहा चार रत्न अपने साथ लेकर घर पर जाओ, और पूछकर आओ। जब तुम एक लोगे तब मैं तीन लूंगा । घर पर जाकर ब्राह्मगने कुटुंबके आगे बात की, कुटुंबमें १ लडका, १ लडकेकी औरत, १ अपनी स्त्री और खुद था। लडका बाल्यावस्थासे लडाईका शोखीन होनेसे राजमहत्ताको चाहनेवाला था, इसलिये सैन्य देनेवाला रत्न लेनेको कहा । पुत्रवधु रसोई-पानीमें आलसु थी, इसलिये रसोई देनेवाला रत्न लेने को कहा। वृद्धा आभूषणों की प्रेमी होनेसे उसने आभूषण देनेवाले रत्नकी मांग करनेको कहा। खुदको खेतीके पाकका शोख होनेसे पाकदायी रत्न चाहता है। चारोंकी सम्मति भिन्न भिन्न रही, और हठाग्रह रहा, पुत्र बोला कि यदि मेरी मांग न स्वीकारी तो झहर पीके मर जाऊंगा। पुत्रवधुने कहा-यदि रसोई देने वाला रत्न न लिया तो मैं कूएमें पडकर मर जाउंगी। वृद्धाने कहा-यदि मेरी For Private And Personal Use Only
SR No.521597
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size120 MB
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