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शाह माणिकचंदजी सुराणा लेखक-श्रीयुत हजारीमलजी बांठिया, बीकानेर. शाह माणिकचंदजी सुराणा, वीरशिरोमणि दीवान राव शाह अमरचंदजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। आप सुयोग्य माता-पिताकी सुयोग्य संतान थे । आप वोर, धीर और गंभीर होनेके साथ साथ धर्मप्रेमी भी थे। कहते है कि आपने सरदारशहरमें एक जैन मंदिर बनवाया था। आपका सारा जीवन रणस्थल ओर स्टेटको सेवामें व्यतीत हुआ। ___ आपके जन्म और स्वर्गवासकी तिथि अभीतक निश्चय नहीं हो पाई है। आपके एक पुत्र हुआ, जिनका नाम दीवान शाह फतेहचंदजी सुराणा था, आप भी वीर योद्धा और कुशल राजनीतिज्ञ थे, जिसकी प्रशंसा अंग्रेज अधिकारीयोंने भी की है।
राजनैतिक और सैनिक क्षेत्र वि. सं. १८७३ ( ई. सं. १८१६ ) मे चुरुके ठाकुर पृथ्वीसिंहने रतनगढ पर कब्जा कर लिया तो महाराजा सूरतसिंहजीने शाह हुकुमचंदजीके साथ शाह माणिकचंदजीको भी रतनगढ भेजा । आपने वहां जाकर अपने वाहुबलका अच्छा परिचय दिया । इससे तत्कालीन बीकानेर नरेशने आपकी खिदमतों पर प्रसन्न होकर आपाको गांव काणेणु पटे दिया।
वि. सं. १८७४ (ई. सं. १८१७ ) में शाह माणिकचंदजी फौज मुसाहिब नियत किये गये और वि. सं. १८८७ तक फौज मुसाहिब रहे। इसी बीच विकानेर नरेशने शाह माणिकचंदजीको कई खास रुक्के प्रदान किये । जिनमेंसे तीन अभीतक आपके वंशधर शाह सेंसकरणजी सुराणाके पास सुरक्षित हैं। जिनकी अविकल नकल आगे दी जायगी।
वि. सं. १८९४ चैत्र सुदि ४ (ई. सं. १८३७ ता. ९ अप्रेल ) को सेखावत जुहारसिंह आदि सीकरको तहस नहस कर बीकानेरके इलाकेमें आ धमके। इस पर शाह माणिकचंदजीकी अध्यक्षतामें सेना भेजी गई । आपके साथ ठा. हरनाथसिंह भी थे। शाहजीने वहां जाकर उसको घेर लिया, फिर भी वह सोकरकी सैनाकी साजिशसे भाग गया।
वि. सं. १८९७ में शाह माणिकचंदने महाराज कुंवर सरदारसिंहजीके नामसे सरदारशहर आबाद किया। इस खिदमतिमें शाहजी को गांव कांगड प्रदान किया गया और इन्हीं वर्षों में तत्कालीन बीकानेर नरशने महरबानी फरमाकर निम्नलिखित गांव शाहजीको बख्से, जिनकी तालिका यह है ।
॥ श्रीरामजी ।। श्री दीवान पचनात् गां गोठां रो चोरियां रैयत समस्तां जोग तिथा थांहरो गांव शाह माणकचंदनै पटै दियो छै सो हासल अमल देनी जागीर खालसे थो सो । द. फोजदार हुकमसिंघ सं. १९१४ मिति आसो सुद १३.
|| गांव सुरसरा शाह माणेकचंदको सं. १८९१ आसाड वदी १४.
॥ गांव वैजासर शाह माणकचंद केसरीचंदको पटे दिया सं. १८९२ वैशाख वदी ७.
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