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આગમગીય આચાર્ય ધરમ્પરાકી નામાવલિ
आगम गच्छ गुर्वावलि
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॥ ८ ॥
सिरि सयल सुरासुर विहिय सेव, सिरि वीर जिनेसर नमउं देव । तस पट्टोधर गणधर सोहम्म, जीणि लीला निदलीय अठ कम्म 11 2 11 तस पाटि पसिद्धा जंबू सामि, केवलिसिउं पुहता सिद्धिठामि । ईणि अणुक्रम हुआ वयरसामि, मनवंछिय सीझई जेह नामि ॥ २ ॥ तस सीस वयरह ऊउ समय पार, सर्पसिद्ध विसद्धउ गुणि अपार । सोपारइ पाटणि गच्छ च्यारि, तीणई थाव्या पुण्य तणई प्रकारि ॥ ३ ॥ तिहां चन्द्रगच्छि गुरु जुगपहाण, सिरि शीलगुणाहिवगुणनिहाण | तेणि पाट्टि महोदय देवभद्द, सरीसर निहीणिय मोहनिद्द तल पाटि भवियण रवी य आस, सिरि धम्मघोषसूरि सूयनिवास । जसमद्दसूरि तल पाटि जाणि, शुभ भाविदं निम्मल हीय आणि ॥ ५ ॥ सूरि सव्वाणंद मुणिंद सार, संसार तारण देसण विचार | तओ अभयदेवसूरि सुद्ध भाव, जिणसामणि पयडीय कइ प्रभाव || ६ || जे संघभार उद्धर समत्थ, जीणिहूं विवरीयां समय तणा महत्थ । जीणई जीतीय मोह महिंद सेन, वांदूं ते सहिगुरु वयर सेन जेहि कोह महा भडमाणभग्ग, जस चित्ति दयारसमग्गि लग्ग । जीणई कीधां वादीय वाद दृरि, वां ते सिरिजिणचंदस्ररि सिरि हेमसिंहस्ररि हेमकाय, जगि सिरि रयणायर सूरिराय । सिरिविनय सिंहरि विनयजत्त, गुणसमुहस्ररि गुरुगुणिहिं पत्त ॥ ९ ॥ सिरि अभयसिंहरि अभयदान, दीधू जे महियल लहीय मान । मानव गणि सेवा करीय भाव, जस नामिइ नासई सय (ल) पाव ॥ १० ॥ तेह गुरु पदि थाप्या परम बुद्धि, सिरि सोमतिलकसूरि जगप्रसिद्धि । जीणई वयण विलासिहं बालकालि, मिथ्याती बूझव्या ईणिकालि ॥ ११ ॥ तसु पट्टोदय गिरिवर दिणंद, जस पाय नमई नितुनितु मुणिंद | दह दिसिधवल - खिस धवलचंद, पणमुं सूरीसर सोमचंद ।। १२ ।। तओ सहिगुरु थाप्या सूरि सार, जाणी गुण मंडण रयण सार | मन पूरी आनंदि नीरपूरि, पणमुं ते सिरि गुणरयणसूरि सिरि पट्टि पर्यट्टिय गुरू वयंस, भवियण मण पंकज रायहंस । झील्या जे उपशम वयणपूरि, बांदरं ते सिरि मुनिसिंहस्ररि 11 28 11 विधि गच्छह मंडण रयण सार, जसनिवसई सरसइ मुखि अपार । भवियण पणमई जे नित विहाण, सिरि सीलरयणसूरि गुरु पहाण ।। १५ ।। तल पट्टि धुरंधर सुगुरुराय, जम पणमई भवियण धरिय भाव । महिमंडलि विहरइं धम्मदंति, सिरि आनंदप्रभसूरि चिर जइअंति ॥ तर आगम गणधर समीह, नितु नवरस वरसईए सरस जीह | गुरु वंदउ भवियण हरख पूरि, जयवंता श्रीमुनि रत्नसरि इति आगम पक्ष गुरावली समाप्तः ॥ उपा० श्री मुनिसागरे । श्रा० मानीयोग्या पुस्तिका पठनार्थ लिखाप्य दत्ता ॥ छः ॥
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