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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१२] ત્ય પ્રકાશ [११ 'किर्लोस्कर' के सम्पादकका पत्र किलोस्करवाडी २५, अक्टुबर १९४० श्री रतिलाल दीपचन्द देसाई, सप्रेम नमस्कार, वि. वि. आपका ता. १९का कृपापत्र मिला। उसके साथका रा. खांबेटेके नाम लिखा हुआ पत्र पढकर उनके पतेसे आज भेल देता हूं। मेरा ख्याल है कि - 'ऊंचे देऊळ' के उपर जो आक्षेप किये हैं उसमें लेखकके हेतुकी ओर चाहिए उतना ध्यान आपने नहीं दिया। यह छोटी कहानी, जैसा कि लेखकने लिखा है, एक दन्तकथाके आधारपर लिखी गई है । किसी भी तत्वको व्यवहारमें लोते समय यदि सारासारका विधेक न रक्खा जाय तो कैसी दुरवस्था पैदा होती है-यही इस कथाका सार है। उसमें बताया हुआ यति यह एक काल्पनिक व्यक्ति है । लेकिन आपने उसका संबंध श्रीहेमचन्द्राचार्यसे जोडनेका व्यर्थ आडम्बर किया है । और इसी लिए लेखकके मनमें न होनेवाला हेतु उसके उपर लगाया गया है-ऐसा मेरा अभिप्राय है। विदित हो । प्रेमभाव रखे यह वि, आपका . शं. वा. किलक्कर सम्पादक इस पत्रके उत्सरमें हमने सम्पादकजीको दूसरा पत्र इस प्रकार लिखा है . 'किर्लोस्कर के सम्पादकको लिखा हुआ दूसरा पत्र अमदाबाद ७-११-४० श्रीमान् सम्पादकजी महाशय 'किर्लोस्कर', आपका ता. २५-१०-४०का पत्र यथासमय मिला था । धन्यवाद । मैं. श्री. द. पां. खांबेटे के उत्तरकी प्रतीक्षामें हूं। किन्तु आज पर्यंत उनकी तरफसे कोई पत्र नहीं मिला । आपका लिखना है कि-'ऊंचे देऊळ'की लघु कथा लेखकने एक दन्तकथा के आधारसे लिखी है और उस कथामें जैन यतिका जो पात्र है वह एक काल्पनिक व्यक्ति है, न कि आचार्य हेमचन्द्र जैसे ऐतिहासिक महापुरुष । - इस लथा के सम्बन्धमें आपका मत यह है । अब कथालेखकने, वह कथा ऐतिहासिक होनेका जो मत कथाके प्रारम्भमैं तथा अन्तमें प्रदर्शित किया है वह देखिये For Private And Personal Use Only
SR No.521564
Book TitleJain Satyaprakash 1940 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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