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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - .. १२०] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકારો जो समाज अपने जिस पूर्व पुरुषको प्राणोंसे भी अधिक प्रिय व पूज्य मानता है, उसी पुरुषके संबंधमे बिना किसी प्रामाणिक आधारके ऐसे आक्षेप सुनना या ऐसा हीन चित्रण देखना उस समाजके लिए कितना दुःखद है ? क्षणभर के लिए मान लिजीये कि आपके किसी इष्ट पुरुषके प्रति कोई ऐसे असत्य आक्षेप करे तो आपको वह बात कितनी दुःखकर मालुम होगी ? इसले आप समझ सके होंगे कि श्री हेमचन्द्राचार्य जैसे पूज्य महापुरुषके सम्बन्धमें ऐसे आक्षेप पढ़नेसे जैन समाजको कितना दुःख हुआ होगा। और सिर्फ इतना ही क्यों ? श्री हेमचन्द्राचार्य केवल जैनसमाजके ज्योतिर्धर क्यों माने जांय ? प्राचीन भारतीय विद्वानोंमें भी उनका स्थान प्रथम पंक्तिमें है। उनके जैसा सर्व विषयग्राही अन्य विद्वान मिलना मुश्किल है । इसके अतिरिक्त-गुजरातके उपर उन्होंने जो महान् उपकार किया है, गुजरातकी अस्मिताको सजीवन करके उन्होंने गुजरातको जो गौरवप्रदान किया है और अपनी अहिंसाप्रधान धर्मपराणताके बलसे गुजरातको जो संस्कारिता दी है वह इतिहास के अमर पृष्ठों पर सुवर्णाक्षरसे अंकित है । उसे वृथा अपलापले कोई मिटा नहीं सकता। - आपकी कथाके साथ एक चित्र भी छपा है जो कथाकी वस्तु जितना ही भयंकर है। उसमें यतिजीका जिस प्रकारका चित्र दिया है उसे देखकर किसीको भी दुःख हुए विना नहीं रह सकता। ___ मैं तो यहांतक कहता हूं कि एक भक्त के संबंधसे नहीं, किन्तु केवल एक अभ्यासककी दृष्टिसे भी यदि आप श्रीहेमचन्द्राचार्य के जीवन, उनकी माहित्य रचना एवं उनके व्यक्तित्वको समझने का प्रयत्न करेंगे तो भी आपने उनके संबंध जो लिखा है उसके लिए आपको अवश्य पश्चात्ताप होगा। अब यह लिखना जरूरी नहीं है कि श्रीहेमचन्द्राचार्य के संबंध आपने जो कुछ लिखा है उसे इतिहासका लेशमात्र भी आधार नहीं है । तो फिर जो वस्तु बिलकुल आधारहीन है और जो लाखों धर्मपरायण हृदयौंको दुःखकर प्रतीत होती है उसे आपस खिच लेने में आपको संकोच नहीं होना चाहिए । ऐसा करके आप अपनी मत्य प्रियता मिन्द कर सकेंगे। ___ हम सब यह समझ लें कि-यदि हमारी कलमसे किसीका भला न हो सके तो उससे किसीकी बुराई भी न हो और किमीको निरर्थक दम्ब म पहुंचे, तो यह किर्तना अच्छा होगा? मुझे आशा है कि हार्दिक भावसे पूर्ण इस पत्र की आप अवश्य कदर करेंगे और इसके उपर निर्मल चित्तसे विचार करके जिम लेखिनीने पक असत्य घटनाका आलेखन किया है उसी लेखिनीसे उनका परिमार्जन करके आपकी नैतिक हिस्मतका और पूर्वग्रहरहित मतिका परिचय करावेंगे। For Private And Personal Use Only
SR No.521564
Book TitleJain Satyaprakash 1940 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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