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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ઊંચે દાળ અને પત્રવ્યવહાર [114] अपराधी धनपाल, राजपुरुष, सभासद और महाराजा कुमारपालके अतिरिक्त एक यति भी मौजूद थे ( यतिका नाम आपने उस कथा में स्पष्ट नहीं किया किन्तु जिस तरह आपने उस पात्रको कथामें उपस्थित किया । उस परसे इतिहासके सामान्य अभ्यासीको भी यह समझना कठिन नहीं है कि वह यति का पात्र, गुजरातके महान ज्योतिर्धर श्रीहेमचन्द्राचार्य ही है)। यतिजी धनपालको अपराधी साबीत करने के लिए बड़ा भारी प्रयत्न करते हैं और राजा तथा सभासदों के समक्ष अनेक प्रकारकी युक्तियां पेश करके धनपाल के बचापको निर्मल बना देते है । यह यतिजीका पात्र मानी सरकारी वकील ( Public Proseentor ) न हो इस तरह बहेस करता है और अपराधीको कठिनसे कठिन-देहान्तदण्डकी-शिक्षा देनेका राजासे आग्रह करता है । बिचारा धनपौल निराश होकर राजाके पास दयाकी भिक्षा मांगता है। राजा दया दिखलाके उसे देहान्तदण्ड न देते हुए उसकी संपत्ति जप्त करले नेकी आज्ञा देता है । उस संपत्तिसे एक मंदिर बंधवाया जाता है।" ___ मैं मानता है कि अब यह बतलानेकी विशेष आवश्यकता नहीं है की Bombay Gagetteer में यूकाविहार संबंधी जो उल्लेख है उसमें और आपने उस घटनाका जो चित्रण किया है उसमें-उन दोनोंमें जमिन-आस्मान जितना अंतर है। इससे आप आसानीसे देख सके होंगे कि जिस कथाको आप, कथाके प्रारंभ में तथा अन्तमें, ऐतिहासिक होनेका दावा करते है वह आपका मनःकल्पित ऐतिहासिक आधार सर्वथा निर्मूल है । मेरी रायसे आपकी कल्पनाशक्तिने इस कथामें जो स्वेच्छाविहार किया है वह स्वेच्छा. विहार इतिहासके पवित्र नामसे लिखी जाती कथामें केवल दूषणरूप माना जाता है। 'यूकाविहार' की घटनाको महाराजा कुमारपालके जीवनकी एक ऐतिहासिक घटमा मानी जाय, तो भी इस कथाके बहानेसे आप जो दुष्ट वस्तु सिद्ध करना चाहते हैं उसको किसी प्रकारका प्रामाणिक आधार नहीं है ऐसा हमें पूरा विश्वास है । जो जैन साधु सूक्ष्मसे सूक्ष्म जीव-जंतुको मारना तो दूर रहा, उसे पीडा करनेका भी विचार नहीं करता वह एक मनुष्यको देहान्तदण्डकी शिक्षा दे कर मार डालने का आग्रह करे-इससे अधिक दुष्ट वस्तु और कौनसी हो सकती है ? आपने इस दुष्ट वस्तुको सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है और इस प्रयत्नकी धूनमें आपने न केवल इतिहासका ही खून किया है, न केवल सस्यका अपलाप किया है, न केवल एक परम पवित्र व अहिंसाके आदर्श उपासक साधुपुंगवके निर्मल यशोदेहके उपर कलंककी कालिमा लगानेका हास्यास्पद प्रयत्न किया है, किन्तु इन सबसे बढ कर आपने एक सारे समाजके कोमलतम भागके उपर दयाहीन सख्त प्रहार किया है । आपको अवश्य ख्याल होना चाहिए कि-श्री हेमचन्द्राचार्यकी जैमें समाज प्रथम पंकिके ज्योतिर्थर पर्व परमपूज्य मानता है। For Private And Personal Use Only
SR No.521564
Book TitleJain Satyaprakash 1940 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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