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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलाचार [दिगम्बर मुनिओं का एक प्राचीन और प्रधान आचारशास्त्र ] लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी (गतांक से क्रमशः) · आगमों की अर्थयोजना के लिए चतुदर्श पूर्ववित् अन्तिम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामीजी ने १० नियुक्तियां बनाई हैं। उनमें उन्होंने श्री शय्यंभवसूरिरचित श्री दशवैकालिक सूत्र का पांचवां अध्ययन 'पिण्डैषणा' की अर्थयोजना के निमित्त पिण्डनियुक्ति का भी निर्माण किया है ( आ. नि. गा. ८४-८५-८६ ) पिण्डनियुक्ति में ६७१ गाथा हैं, जिसके उपर ४६ गाथाओं का भाष्य है, और ७००० श्लोक प्रमाण आ. श्री मलयगिरिजीकृत टीका है। यह सारा शास्त्र देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड-सूरत ने प्रकाशित किया है। मूलाचार में गाथा ६२ तक का ६ ठा परिच्छेद पिण्डनियुक्ति और उसके भाष्य से बना है । अन्त की २१ गाथाएं दिगम्बरों की विशेषता बतलाने के लिए जोडी हुई हैं। - मैं यहां पिण्डनियुक्ति और मूलाचार की गाथाओं के नम्बर आमने सामने रख देताहूं, कि पाठक स्वयं ही इस का निर्णय करलें। पिण्ड गा. भू. गा. | पिण्ड गा. मू. गा. | पिण्ड गा. भू. गा. | पिण्ड गा. मू. गा. ... २ | ३३० ... १८ सः ४८३/ ९३ ... ३३३ . ४६१ ४९० ४९२ ४९४ १७१) ५०६ २४८) २५०१ ५०७ ४०८ ४०९ २७७ २८५ २९८) ४२८ ३०३ ५५८ ... ४५४) उ.सु.गा. मू.प.२गा. २६-३३ ६-६० | २६-३५ ६-६१ ५६५॥ ३१६ ... १७ | ४५५) For Private And Personal Use Only
SR No.521563
Book TitleJain Satyaprakash 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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